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पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/३५५

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सिराजुद्दौला

सिराजुद्दौला २६ ता० का तीसरा पहर मीर जाफ़र के मसनद पर बैठाए जाने के लिए नियत था। मालूम होता है उसकी मार जाफर का आत्मा भीतर से अशान्त थी। ऐन मौके पर मसनद पर बैठाया उसने सिराजुद्दौला की मसनद पर बैठने से इनकार कर दिया । क्लाइव को उसका हाथ पकड़ कर उसे मसनद पर बैठाना पड़ा । पहले क्लाइव नए नवाब के सामने आकर आदाब बजा लाया और फिर बाकी दरबारियों ने दरजा बदजा सलामियाँ दी ।* कम्पनी और उसके मददगारों के लिए अब मुर्शिदाबाद के खजाने से अपनी अपनी जेब भरने का समय मुर्शिदाबाद की आया। खजाने की जाँच पड़ताल के लिए एक दिन नियत किया गया। यह कार्य दोनों जैन जगतसेठों के सुपुर्द किया गया। क्लाइव और उसके साथियों ने जब देखा कि मुर्शिदाबाद के ख़ज़ाने की हालत, जो उन्होंने सुन रक्खी थी वह अव न थी, तो वे इस बात पर राजी होगए कि मीरजाफ़र ने जितना धन उन्हें देने का वादा किया था उसमें आधा फौरन अदा कर दे और श्राधा तीन साल के अन्दर तीन किस्तों में दे दे। क्लाइव का परम मित्र अंगरेज़ इतिहास लेखक और्म लिखता है:- "xxx ६ जुलाई सन् १७५७ ईसवी तक (कलकत्ते की अंगरेज) कमेटी के पास चाँदी के सिक्कों में ७२,७१,६६६ रुपये पहुंच गए । यह खजाना सात सौ सन्दूकों में भर कर सौ किश्तियों पर लादा गया। सैनिकों

  • Clises Letter to the Select Committee, dated 30th June 1757