१५२ भारत में अंगरेजी राज दूसरे अंगरेजों को निजी तौर पर बिना सरकारी महसूल दिए तिजारत करने की इजाजत कहीं न थी और न कम्पनी को ही देश के भीतर की मामूली तिजारत में बिना महसूल दिए हिल्सा लेने का अधिकार दिया गया था। इतना ही नहीं, बल्कि जैसा पिछले अध्याय में कहा जा चुका है, नमक, छालिया, तम्बाकू, इमारती लकड़ी, सूखी मछली इत्यादि बहुत सी चीजों में शुरू ले ही बंगाल भर के अन्दर युरोपनिवासियों को तिजारत करने की मनाही थी। ___ सब से पहले मीर जाफर के समय में अंगरेजों ने जबरदस्ती इस नियम को तोड़ा और नमक बगैरह की तिजारत शुरू कर दी, जिसका ज़िक ऊपर किया जा चुका है। मीर जाफर ने बहुतेरा पतराज किया, किन्तु उसकी एक न चल सकी। अंगरेजों का यह तमाम व्यापार शाही फरमान के विरुद्ध था, किन्तु कम से कम कुछ दिनों तक अंगरेज व्यापारी अपनी इस नाजायज़ तिजारत के माल पर महसूल उसी तरह अदा करते रहे, जिस तरह तमाम देशी व्यापारी अपने माल पर करते थे। ___ अब मीर कासिम को नवाब बनाने के बाद कम्पनी के मुलाजिम और दूसरे अंगरेज, कम्पनी का पास (दस्तक) लेकर, बिना किसी तरह कर महसूल दिए, देश भर में हर चीज़ का व्यापार करने लगे और जब नवाब के कर्मचारी एतराज़ करते थे या महसूल माँगते थे तो उन्हें कम्पनी के नए सिपाहियों के हाथों दुरुस्त कर दिया जाता था। इतिहास लेखक मिल लिखता है :- "इस तरह कम्पनी के मुलाजिमों का माल बिलकुल बिल्ला महसूल
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