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भारत में अंगरेज़ी राज

२७४ भारत में अंगरेजी राज इसके बाद कोई सन्देह नहीं कि रामनारायन का काम तमाम कर दिया जायगा । जिन जिन लोगों ने अंगरेजों का साथ दिया था, उनमें से सब नहीं तो अधिकांश से मीरलासिम भारी भारी रकम वसूल कर चुका है। रुपए वसूल करने के लिए जो जो तकलीफ उन्हें दी गई हैं, उनसे कई मर चुकं । बहुतों को या तो कमीनेपन के साथ करल कर दिया गया और या (जो हिन्दोस्तानियों में अक्सर होता है । बेइज्जती से बचने के लिए उन्होंने स्वयं आत्महत्या कर लीx x x" मीर कासिम के चरित्र को कलङ्कित करने में अव इन लोगों ने कोई कसर उठा न रक्खी । अंगरेजों को रुपए पर देने के लिये ही मीर कासिम को अपने अनेक मूठे इलज़ाम - आश्रितों पर जुल्म करने पड़े। इतिहास से ज़ाहिर है कि खद अंगरेज़ ही इस तरह के अनेक अभागों को ला लाकर मीर कासिम के हवाले करते थे। अंगरेजों ही ने साढे सात लाख रुपए या कुछ अधिक के बदले में अपने सच्चे मित्र निदोष रामनारायन को छल से पकड़ कर मीर कासिम के हाथों में दिया और अब अंगरेज़ ही मीर कासिम को इन सब अन्यायों के लिए ज़िम्मेदार ठहराते थे। एक इलजाम मीर कासिम पर यह भी था कि वह अपनी फौज बढ़ा रहा था, उन्हें यूरोपियन ढङ्ग की कवायद और यूरोपियन शस्त्रों का इस्तेमाल सिखा रहा था और नई किलेबन्दियाँ करा रहा था (!)। इसी पत्र में इन लोगों ने लिखा कि मीर जाफर के चरित्र के