वारन हेस्टिंग्स २५७ ऊपर" कमा चुका था। वास्तव में हेस्टिंग्स के खिलाफ नन्दकुमार की शिकायतें झूठो न थीं। हमें यह भी याद रखना चाहिये कि डेढ़ सौ साल पहले भारत के अन्दर चालीस लाख रुपए की उतनी कीमत थी जितनो श्राज पाठ करोड की, और चालीस लाख के श्रादमी उन दिनों इंगलिस्तान में इतने ही कम थे जितने पाठ करोड़ के आज दिन भारत में। वारन हेस्टिंग्स जिस तरह रिशवते लेता था उसी तरह देता और दिलवाता भी था। उसके अनेक छोटे और बड़े काले और गोरे दलाल कम्पनी की अमलदारी कर्मचारियों द्वारा देश व्यापी लूट सर में तमाम महकमों के अन्दर फैले हुए थे, जो देशी नरेशों और भारतीय प्रजा दोनों को तरह तरह से लूटते थे और उन पर तरह तरह के अत्याचार करते थे। कोलवक नामक अंगरेज़ ने २८ जुलाई सन् १७EE को एक पत्र भारत से इंगलिस्तान अपने पिता के नाम भेजा, जिसमें उसने लिखा :- "मिस्टर हेस्टिंग्स ने इस देश को ऐसे कलक्टरों और जजों से भर दिया है, जिनके सामने एक मात्र लक्ष्य धन कमाना है। ज्योंही ये गिद्ध मुल्क के उपर छोड़े गए, उन्होंने कहीं कोई बहाना निकाल कर और कहीं बिना किसी बहाने के देशवासियों को लूटना शुरू कर दिया ।xxx जज लोग मुकदमे का फैसला उसके हक में करते हैं जो उन्हें सबसे ज़्यादा रुपए देता है। और चोर निर्विन डाके डालने के बदले में बाजाब्ता सालियाना अदा करते हैं।"
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