२६६ भारत में अंगरेजी राज नाना फड़नवीन को जब अंगरेजों के इरादों का पता चला और मालूम हुआ कि गॉडर्ड की सेना गुजरात पहुँच गई है, तो उसले एक ओर माधोजी सींधिया को संना देकर गुजरात भेजा ताकि वह गुजरात से अंगरेजों को बाहर निकाल दे और दूसरी ओर मृदाजी भोसले को आज्ञा दी कि तुम फ़ौरन तीस हजार सेना लेकर बंगाल पर चढ़ाई कर दो। नाना की तजवीजे काफ़रे ज़बरदस्त थीं; किन्तु नाना को उस समय पता न था कि माधोजी और अंगरेजों में पहले ही गुप्त सन्धि हो चुकी थी और मूदाजी भोसले भी भीतर से वारन हेस्टिंग्स के साथ मिला हुआ था। माधोजी का बाको हाल आगे चल कर दिया जावेगा। मूदाजी ने नाना को धोखे में रखने के लिए ३०,००० लेना लेकर बंगाल पर चढ़ाई अवश्य की, किन्तु उसने पहले हो से वारन हेस्टिंग्स को एक गुप्त पत्र लिख दिया कि-"मैं यह चढ़ाई केवल नाना फड़नवीस और दूसरे मराठों को खुश करने के लिए कर रहा हूँ, यह केवल दिखावा है। मैं मार्ग में जानकर इतनी देर लगा दूँगा कि बरसात से पहले बंगाल की सरहद पर न पहुँच सकें और फिर बरसात का बहाना लेकर बरार वापस लौट आऊँगा।" मूदाजी भोसले ने हेस्टिंग्स के साथ अपने वचन का पालन किया। सारांश यह कि इन दोनों मराठा सेनापतियों ने अपने स्वामी और देश दोनों के साथ विश्वासघात किया। करनल गॉडर्ड अब सूरत में बैठा हुआ एक ओर नाना फड़नवीस के पास सुलह के पत्र भेज रहा था और दूसरी ओर पूना पर
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