२६ भारत में अंगरेजी राज सन्धि के अनुसार राघोबा को झाँसी की ओर भेज दिया जाय, ताकि मैं राघोबा के पुत्र बाजीराव को साथ लेकर पूना के लिए रवाना हो जाऊँ। किन्तु गॉडर्ड का मतलब निकल चुका था। वह राघोबा को इस तरह हाथ से छोड़ देने के लिए तैयार न था। उसने अब तालेगाँव को गुप्त सन्धिको स्वीकार करने से इनकार कर दिया। माधोजी को जबरदस्त नैराश्य और दुख हुआ। गॉडर्ड ने इस हालत में उसे देर तक गुजरात मे रहने देना ठीक न समझा । चन्द रोज़ के अन्दर ही उसने बिल्कुल अचानक माधोजी की सेना पर हमला कर दिया। माधोजी की सेना को तैयार होने का समय भी न मिल सका। जिस तरह पेशवा के दल में माधोजो अंगरेजों से मिल गया था, उसी प्रकार माधोजी की सेना में न मालूम कितने इस समय गॉडर्ड से मिले हुए होंगे। अन्त में गॉडर्ड ने कर्तव्य विमूढ़ माधोजी और उसकी सेना को गुजरात से खदेड़कर बाहर कर दिया। करनल गॉडर्ड के लिए अब केवल पूना पर हमला करना बाकी था। दूरदर्शी नाना को जब माधोजी की कर्त्तव्य विमुखता, होलकर ___की असफलता और अंगरेजों के इरादों का पता समस्त भारतीय . चला, तो उसने फौरन हिन्दोस्तान के करीब नरेशों को मिलाने जीनामा करीब सब मुख्य मुख्य नरेशों को इन विदेशियों कोशिश के खिलाफ अपने साथ मिलाने के जोरदार प्रयत्न शुरू किए। हैदराबाद के निज़ाम, अरकाट के नवाब, मैसूर के सुलतान हैदरअली और दक्खिन के अन्य कई
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