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पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/५७७

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३०१
पहला मराठा युध्द

पहला मराठा युद्ध ३०१ करनल गॉडर्ड अपनी विशाल सेना सहित पूना की ओर बढ़ा। __ रास्ते में कल्यान, बसई और कोकन प्रान्त के अन्य तीसरी बार अंगरेजों के रजा कई स्थानों को उसकी सेना ने खूब रौंदा और को हार बरवाद किया। किन्तु अभी वह मराठा साम्राज्य के केन्द्र पूना के निकट भी न पहुँच पाया था कि भोरघाट के ऊपर हरिपन्त फड़के, परशुराम भाऊ और होलकर के अधीन पेशवा की सेना ने उसे रास्ते ही में घेर लिया। मैदान खूब गरम हुश्रा, किन्तु फिर तीसरी बार विजय मराठों ही की ओर रही और अप्रैल सन् २७१ के श्रारखीर में जान और माल दोनों की भारी हानि उठाकर पूना के दर्शन किए बिना ही कम्पनी की इस विशाल सेना को उसी तरह जिल्लत के साथ पोछे भागना पड़ा जिस तरह जनवरी सन् १७७६ में बम्बई की सेना को भागना पड़ा था। बचे खुचे आदमी जान बचाकर बम्बई पहुँच गए, किन्तु इस दूसरी लज्जा जनक हार से अंगरेजों को मराठों की वीरता और युद्ध कौशल का खब पता चल गया और उनकी हिम्मत कुछ असे के लिए टूट गई । ___ इस दरमियान भारत के दूसरे हिस्सों में भी वारन हेस्टिंग्स की साजिशें जारी थीं। माघोजी सींधिया को अंग- अगरेजा का गाहद रेजों की दगाबाजी का काफी तजरुबा हो चुका के राना को अपनी ओर फोड़ना था। उसको हालत इस समय अधमरे साँप को ली थी। वारन हेस्टिंग्स ने सबसे पहले उसे पूरी तरह कुचल डालना ज़रूरी समझा। सीधिया का मुख्य गढ़ ग्वालियर था। वारन हेस्टिंग्स ने सींधिया के एक बाजगुजार गोहद नरेश