३३८ भारत में अंगरेजी राज इलाके को मराठों से वापस लेन के लिए अपने बेटे टीपू को सेना सहित भेजा। टीपू ने वह सारा इलाका फिर मराठो से विजय कर लिया। इसके बाद सन् १७७८ में छै साल के लिए मराठों और हैदर में सन्धि हो गई। अंगरेज़ो और हैदर के दरमियान जो सन्धि हुई थी उसका उल्लंघन हैदर पर मराठों के हमले के समय अंगरेज़ कर ही चुके थे। दूसरी सन्धि मोहम्मदअली और हैदर के दरमियान थी। उसके पालन की ज़िम्मेदारी भी अंगरेजों ने अपने ऊपर ली थी। किन्तु मोहम्मदअली का अंगरेजों के पंजे से निकल कर मैसूर का बाजगुजार हो जाना अंगरेजों के लिए बहुत बुरा था। इसलिए सन्धि के बाद उन्होंने अपने वादे को पूरा करने के बजाय नवाब मोहम्मदअली को हैदरअली के खिलाफ भड़काए रक्खा । मैसूर की अन्य सामन्त रियासतों को भी उन्होंने अब हैदरअली के खिलाफ भड़काना- शुरू किया। इनमें एक छोटी सी रियासत चित्तलदुग की थी। अंगरेजों ने वहाँ के राजा को भड़काकर उससे हैदर के खिलाफ बगावत करवा दी। हैदर ने चित्तलदुग पर हमला करके राजा को फिर से अपने अधीन कर लिया। इस लड़ाई में ही हैदर ने अंगरेजों की बेवफ़ाई का पूरा परिचय पाकर खुले एलान कर दिया कि मैं अंगरेज़ी इलाके पर हमला करने वाला हूँ। उसने फिर एक बार दक्खिन के अन्दर मुग़ल दरबार के मुख्य नायब निज़ाम से मदद की प्रार्थना की। निजाम ने फिर मदद का वादा किया और फिर दूसरी बार ऐन मौके पर हैदर के साथ दगा की।
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