पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/६२७

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हैदरअली

हैदरअली ३४७ कब्जा करने के लिए भेजा। अकस्मात् उसी दिन रात को तंजोर से एक दूसरा अंगरेजी दस्ता उसी किले पर कब्जा करने के लिए रवाना हुश्रा । ये दोनों अंगरेजी दस्ते दो ओर से किले की फलील पर चढ़ने लगे। दोनों को एक दूसरे का पता न था। किला टोपू के कब्जे में था, किन्तु टीपू उस समय अपनी सेना सहित किले से कुछ दूर था। किले के अन्दर बहुत थोड़े से हिन्दोस्तानी थे। इस अचानक हमले का पता लगते ही वे लोग किले के और भीतर के हिस्से में चले गए। वे शायद टीपू के इन्तजार में थे। रात की अँधियारी में एक ओर के अंगरेजी दस्ते ने फ़सील के ऊपर चढ़ कर गोलियां चलाई । दूसरी ओर के अंगरेज़ी दस्ते ने समझा कि यह गोलियाँ किले वाले चला रहे हैं । उन्होंने जवाब में श्रावाज के निशाने पर गोलियों की बौछार शुरू की। दस मिनट से ऊपर तक दोनों ओर से गोलाबारी होती रही। एकाएक जब एक ओर के किसी अंगरेज़ की आवाज़ दूसरी ओर के किसी अंगरेज़ के कानों तक पहुँची तो दोनों को मालूम हुआ कि वे आपस ही में गोलियाँ चला रहे थे। उस समय तक कम्पनी के करीब सात सौ सिपाही अंगरेजी गोलियों के शिकार हो चुके थे। अगले दिन सुबह को जब टीपू ने तरकाटपल्ली पहुँच कर इस घटना का हाल सुना तो उसे बड़ी हँसी पाई। दूसरी घटना मनियारगुडी की है। मनियारगुडी के किले की सेना एक दिन रात को रसद आदि जमा करने के लिए आस पास के इलाके में गई हुई थी। अंगरेजी सेना ने मौका पाकर उसी रात