पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/६३९

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हैदरअली

हदरअली ३५६ थे। यदि कोई सरकारी कर्मचारी प्रजा के ऊपर किसी तरह का अत्याचार करता था तो हैदरअली सदा उस कड़ी से कड़ी सज़ा देता था। उसके राज भर में इस बात की सख्त आशा थी कि किसानों से उनकी नियत मालगुजारी के अलावा एक कौड़ी भी किसी बहाने न ली जावे। हैदरअली की बुद्धि की प्रखरता और उसकी याददाश्त बिलकुल अलौकिक थी। नैपोलियन के समान वह एक बुद्धि को साथ कई कई काम किया करता था। वह जिस प्रखरता वक्त कोई मामूली तमाशा देखता रहता था उसी वक्त कुछ लोगों से प्रश्न करता रहता था, जवाब देता रहता था, अख़बार सुनता था, चिट्ठियां सुनता था, चिट्ठियाँ लिखवाता था और साथ ही अपने मन्त्रियो के साथ गम्भीर सं गम्भीर प्रश्नों पर बातचीत करता रहता था और उनका फैसला करता रहता था। ये सब काम एक साथ चलने रहते थे। एक साथ वह तीस तीस और चालीस चालीस मुन्शियों से काम लेता रहता था। रोज सुबह को जब वह एक चौकी पर बैठकर हाथ मुंह धोया करता था, उसी समय उसके अनेक जासूस उसकी चौकी के चारों श्रोर खड़े हो जाते थे और पिछले चौबीस घण्टे का अपना अपना हाल सुनाते थे। ये सब जासूस एक साथ बोलते थे। हैदर मुंह धोते धोते सब की बात सुनता था, केवल आवाज़ से उन्हें पहचानत। था, और जिससे ज़रूरत समझता था बीच बीच में सवाल कर लेता था। मनुष्य के चरित्र को वह केवल एक बार शक्ल देखकर