पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/६४०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
३६०
भारत में अंगरेज़ी राज

३६० भारत में अंगरेजी राज पहचान जाता था, रंगरूटों को केवल चेहरे से देखकर भरती कर लेता था घोड़ों और जवाहरात की भी उसे ग़जब की पहचान थी। हैदरअली वीर था और वीरता की बड़ी कद्र करता था। अपने . सिपाहियों के साथ उसका व्यवहार अत्यन्त वीरता और उदारता और बराबरी का रहता था। भादगी जिन्हें वह युद्ध में हरा देता था उनके साथ भी उसका व्यवहार सदा दया और उदारता का होता था। इतना बड़ा नरेश होने पर भी उसमें घमण्ड या अभिमान का निशान तक न था । अपने राज को वह सदा 'खुदादाद' कहा करता था। अपने दरबारों तक में वह मामूली सिपाहियों के साथ बराबरी का व्यवहार करता था । स्वयं एक मामली सिपाही का सा जीवन व्यतीत करता था। भोजन जो सामने आता खा लेता था। सफर में वह अक्सर भुने हुए चने, बादाम और ज्वार की सूखी रोटो या इनमें से जो सामने आ जाचे खाकर रह जाता था। अपने तख्त पर वह ज्यादा से ज्यादा साल में एक बार ईद के दिन चन्द घण्टे के लिए बैठता था और वह भी दूसरों की प्रार्थना पर । हैदरअली का कद मैंझोला था, उसका रंग साँवला था। किन्तु उसके शरीर की बनावट सुन्दर थी। हैदरअली का __वह मज़बूत और निहायत फुर्तीला था। वह शारीरिक बल " घोड़े का बहुत अच्छा सवार था। पैदल लम्बे सफर करने का भी उसे बेहद शौक था और आदत थी । सप्ताह में दो बार वह अपने सर, डाढ़ी और मूंछों के बाल मुंडवा