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पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/६४१

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३६१
हैदरअली

३६१ हैदरअली देता था। डाढी और मूछ वह इतनी साफ़ रखता था कि नकचुटनी से एक एक बाल निकलवा देता था। उसकी देखादेखी उसके अधिकतर दरबारी भी डाड़ी न रखते थे और भछे यदि रखते थे तो इतनी कम कि जो दूर से दिखाई न देती थी। हैदरअली को लाल कपड़ों का शौक था और अपने सर पर वह एक सौ हाथ लम्बी लाल पगड़ी बाँधता था। शिकार का और खास कर शेर के शिकार का उसको बड़ा शेर पालना शौक था। उसके यहाँ अनेक शेर पले हुए थे जो " रोज़ सुबह खुले हुए उसके सामने लाए जाते थे। हैदरअली अपने हाथ से इन शेरों को लडडू खिलाया करता था। उनके पक्षों और जबड़ों में वह लड्डू दे देता था। लिखा है कि उसका निशाना कभी चूकता न था । अपने सामने अखाड़े में वह अक्सर शेर के साथ अपने किसी एक वीर सिपाही की कुश्ती कराया करता था। यदि सिपाही शेर को पछाड़ पाता तो उसे इनाम-श्रो-इकराम दिए जाते थे और यदि शेर हावी होने लगता, तो हैदर फौरन दूर से बैठा हुआ शेर की कनपटी पर गोली मार देता और इससे पहले कि शेर का पञ्जा सिपाही पर पड़ सके, शेर गोली खाकर गिर पड़ता था। हैदरअली के शारीरिक परिश्रम और कष्ट सहन की कोई सीमा न थी। वह कई कई राते जंगल में बारिश और सरदी के अन्दर घोड़े की पीठ पर गुज़ार देता था। घोड़ो, हाथियो, तोपों और रसायन का