पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/६४२

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भारत में अंगरेज़ी राज

३६२ भारत में अगरेजी राज उसे खास शौक था। उसके एक प्यारे हाथी का नाम “पवनगज' था जिसके मरने पर हैदरअली ने बड़ा दुख मनाया। घोड़े खरीदने का उसे इतना अधिक शौक था कि दूर दूर के मुल्कों से घोड़े के सौदागर उसके दरबार में पहुँचते थे और यदि किसी लौदागर का घोड़ा उसके राज के अन्दर मर जाता और सौदागर अपने घोड़े की अयाल और दुम काट कर स्थानीय कर्मचारी की सनद के साथ हैदरअली के दरबार में पेश करता तो घोड़े की आधी कीमत उसे खजाने से दिलवा दी जाती थी। इन सब बातों के अलावा हैदरअली अंगरेजों का कट्टर शत्रु था। अंगरेजों के लिए उसका नाम एक 'हव्वा' हैदरअली और था। गोकि हैदरअली की नीतिज्ञता नाना फड़- अंगरेज़ नवीस के टक्कर की न थी, सब से बड़ी गलती उसकी यह थी कि अपनी सेना के अनेक बड़े बड़े ओहदो पर उसने फ्रान्सीसियों को नियुक्त कर रक्खा था, जिसका फल उसकी मृत्यु के बाद उसके बेटे टीपू सुलतान को भोगना पड़ा, फिर भी इसमें सन्देह नहीं कि अपने जीवन भर अंगरेजो को भारत से निकालने का हैदर ने जी तोड़ प्रयत्न किया। वह जब तक जिया, अजेय रहा और अन्त में इसी प्रयत्न में उसने अपनी जान दी। हम ऊपर लिख चुके हैं कि जिस समय गायकवाड़, सींधिया और भोसले तीन तोन ज़बरदस्त मराठा नरेश महाराष्ट्र मण्डल और अपने देश दोनों के साथ विश्वासघात कर चुके थे, और निज़ामुल मुल्क भी अंगरेजों के साथ मिलकर अपने साथियों और मुल्क