हदरअली ६ दोनो को दगा दे चुका था, उस समय नाना फडनवीस और भारत की स्वाधीनता दोनों की आशा का एकमात्र प्राधार वीर हैदरअली था। इतना ही नहीं, बल्कि जिस समय नाना फड़नवीस भी अपनी सन्धि के अनुसार हैदरअली की मदद करने के नाकाबिल हो गया और निजाम ने अपना वादा साफ़ तोड़ दिया, उस समय अंगरेज़ो की पूरी शक्ति के मुकाबले का सारा बोझ अकेले हैदरअली के कन्धों पर पड़ा। इसमें सन्देह नहीं हो सकता कि हैदरअली ने आश्चर्यजनक साहस और सफलता के साथ अकेले इस बोझ को बरदाश्त किया, और यदि भवितव्यता वीच में न पड़ती, यदि ठीक उस समय जब कि भारत में अंगरेजों के हाथ पाँव बिलकुल फूल चुके थे, मौत भारतीय स्वाधीनता के उस अन्तिम आधार को उठा कर न ले गई होती, तो उसके बाद का भारत और अंगरेज जाति दोनों का इतिहास बिलकुल दूसरे ही ढंग से लिखा गया होता। हैदरअली के बाद फिर ७५ साल तक भारत के पुत्रों को अपनी स्वाधीनता के लिए उस तरह का व्यापक प्रयत्न करने का साहस न हो सका। निस्सन्देह भारत की आजादी के लिए प्रयत्न करने वालों में हैदरअली का पद सर्वोपरि है और आजादी के चाहने वालों में उसका नाम सदा के लिए जिन्दा रहेगा।
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