निजाम लॉर्ड कॉर्नवालिस ३०५ कम्पनी के दूसरे मित्र निज़ाम के साथ कॉर्नवालिस का सलूक इससे बेहतर न था। इंगलिस्तान से चलते कॉर्नवालिस और र समय डाइरेक्टरों ने उसे हिदायत कर दी थी कि 'गुण्टर का इलाका' किसी तरह निज़ाम से ले लिया जाय। कॉर्नवालिस जानता था कि यदि मैसूर युद्ध से पहले निजाम पर यह वात जाहिर हो गई तो निज़ाम के टीपू से मिल जाने का डर है। वह मौके की ताक में रहा। युद्ध के बाद जब उसने निजाम को निर्बल पाया तो अपने एक अफसर कप्तान केनावे को इस काम के लिए निज़ाम के दरबार में भेजा। इतिहास लेखक मिल लिखता है :- "तृय हो गया था कि जब तक कप्तान केन्नावे दरबार में पहुँच न जाये तब तक निजाम को यह खबर न होने पावे कि उससे गुस्टूर माँगे जाने की तजवीज़ की जा रही है xxx मद्रास को गवरमेण्ट ने इधर उधर के बहाने लेकर एक सेना गुष्टूर के आस पास पहुँचा दी, और इससे पहले कि कोई दूसरी शक्ति लडने के लिए या एतराज़ करने के लिए पहुँच सके, खुद उस इलाके पर कब्जा करने की तैयारी कर ली ।"* निजाम पहले ही कायर और कमजोर था। युद्ध की जरूरत
- “No Intemation was to be given to the Nirum of the proposec
dem und, till after tic. Irival of Captaan Kennaway at his Court the Governreent of Madras, under spacious pretences, contyed a body o troops to the neighbourhood of the Sircar , ind heint themselves in retrlines __to seize the territory before any other power could interpose, either wit arms or reinonstrance"--Mill, volv, p 225