३८६ भारत में अंगरेजी राज भी न पड़ी और गुण्दर का इलाका कम्पनी के हाथों में आ गया ! कहा जाता है कि किसी डाकू की माँ ने सिकन्दर के सामने विजेताओं और डाकुओं की परस्पर समानता दर्शाई थी। निस्संदेह उसे इससे बढ़कर मिसाल न मिल सकती। अन्त में लॉर्ड कॉर्नवालिस के शासनकाल की और कुछ काररवाइयों और उसके 'शासन सुधारों पर कम्पनी के मुलाजिमों पर नजर डालना ज़रूरी है । सव से पहले उसके को नियुक्ति " समय के कम्पनी के नौकरों की नियुक्ति का ढङ्ग । इतिहास में दर्ज है कि उस समय के इंगलिस्तान के युवराज (प्रिन्स ऑफ वेल्स) ने अनेक बार अपने अनेक मित्रों या आश्रितो को भारत की खास खास नौकरियों के लिए सिफारिश की और कॉर्नवालिस बगबर युवराज की इच्छा को पूरा करता रहा । एक बार युवराज ने कॉर्नवालिस को लिखा कि आप "एलीकान नामक एक काले" को बनारस की फौजदारी की चीफ़ जजी से हटा कर पैल्लेग्राइन ट्रीज़ नामक एक अंगरेज़ को उसकी जगह नियुक्त कर दें। पैल्लेग्राइन ट्रीज़ इंगलिस्तान के एक बदनाम महाजन का बेटा था और युवराज को उस महाजन का कुछ का अदा करना था। कॉर्नवालिस इस बार युवराज की इच्छा पूरी न कर सका। उसने युवराज को लिखा कि अली इब्राहीम खाँ (जिस युवराज ने 'काला एलीकान' लिखा था ) गोकि हिन्दोस्तानी है फिर भी "भारत के सब से अधिक योग्य और सब से अधिक सम्मानित सरकारी अफसरों में से है।” जब कि ट्रीब्ज़ नौजवान और बिलकुल नातजरु
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