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भारत में अंगरेज़ी राज

पर हमला करने की पहली मिसाल थी ! महाराष्ट्र मण्डल का अब करीब करीब खात्मा हो चुका था ! गायकवाड़ और भोसल पहले ही मण्डल से टूट चुके थे। सीधिया और होलकर की यह दशा हो रही थी ! इन चारों की इस शोचनीय हालत में अकेला पेशवा दवार मण्डल की उस इमारत को, जिसकी बुनियाद हिल चुकी थी, कब तक सँभाल सकता था। सींधिया को सेना जिसका प्रधान सेनापति दी बौयन था, अनेक लड़ाइयाँ देख चुकी थी। उसने होलकर की सेना को हरा दिया। किन्तु होलकर ने पीछे लौटते हुए सीधिया के राज को खुब रोदा और सींधिया के मुख्य नगर उज्जैन को अच्छी तरह लूटा। इस समय से ही सींधिया और होलकर के कुलों में परस्पर वैमनस्य पीढी दर पीढ़ी चलता रहा। इसके बाद होलकर ने भी अंगरेजों की सलाह से अपनी सेना में यूरोपियन अफसर नियुक्त करना शुरू कर दिया। वह दोबारा सींधिया राज पर हमला करने का इरादा कर रहा था। ____एक ओर तुकाजी होलकर की शत्रुता और दूसरी ओर उसकी अपनी सेना में दी बौयन और अनेक दूसरे यूरोपियनों का ऊँचे पदो पर होना, इन दोनों बातों ने माधोजी सींधिया को इस समय खासा जकड़ रखा था। वह खूब समझ चुका था कि ये यूरोपियन मुलाज़िम अंगरंजा के विरुद्ध मेरा साथ कभी न दंगे। इसके बहुत दिन पहले नाना फड़नवीस ने एक बार माधोजी से कहा था- "अंगरेजों को इस साम्राज्य में पैर रखने की जगह नहीं मिलनी