जिनकी खुराक का प्रबन्ध इस तरह से होता है कि यह लोग किसी ज़रूरतमन्द कमबख़्त को ढूँढ़कर और रुपया देकर सारी रात उस स्थान में जो इन जीवों के लिये होता है ले जाकर चारपाई से बाँध देते हैं और इस तरह से वह जीव इनके खून पर गुजारा करते हैं। क्योंकि यह बनिये लोग मनुष्य से ज्यादा जीवों पर दयालु होते हैं। इसी तरह से यह शख्स अपने घरों की दीवारों पर सूराख रख छोड़ते हैं। जहाँ कई प्रकार के परन्दे घोंसले बना लेते हैं। इन परन्दों को यह लोग नित्य प्रति खाने को देते हैं। गुजरात में कम्वे नामी शहर में इन लोगों ने बीमार परन्दों के लिये एक अस्पताल खोल रखा है। जहाँ पर एक जर्राह को इनकी चिकित्सा के लिये इनाम व इक़राम मिल जाते हैं। यहाँ एक बार एक जख्मी शाहीं आ गया। जिसे दूसरे परन्दों के बीच रखा गया। इस कम्बख्त ने यहाँ इन्हें मारना और खाना शुरू कर दिया अतएव उन्होंने उसे यह कह कर निकाल दिया कि यह अवश्य फिरङ्गी नस्ल का होगा।
यह बनिये दरिया गङ्गा को बड़ा मानते हैं और कहते हैं कि इसमें स्नान करने से पाप दूर हो जाते हैं। और यदि मुरदे की राख इसमें डाली जावे तो भी उसके पापों का नाश हो जाता है। चुनाँचे बड़े-बड़े अमीरों की राख बड़ी शान और बाजे-गाजे के साथ बड़ी-बड़ी दूर से यहाँ लाकर डाली जाती है। बहुत से हिन्दू राजा इस दरिया का जल पीना अपना धर्म समझते हैं। और इसी अभिप्राय के लिये हर रोज़ ऊँट भेजते हैं चाहे दो तीन मास का रास्ता क्यों न हो। वह लोग एक मूर्खता भी करते हैं और वह यह कि जब कोई शख्स मरने के करीब हो तो उसे इस दरिया के किनारे ले जाते हैं और पानी पिला-पिला कर ही मार डालते हैं।
प्रायः ऐसा होता है कि भक्तिभाव से ही कुछ मनुष्य इस दरिया के किनारे पर आ मरते हैं। और मैंने स्वयं देखा है कि आने जाने वाले हिन्दू इनकी लाशों को दरिया में ढकेल देते हैं--मेरे विचार में उन लोगों के विषय में जिन्हें मनुष्य कहना मनुष्य नाम से अपमान करना है, और जो मुग़लिया सल्तनत में बहुत बड़ी तादाद में हैं।"
'मनूची' दिल्ली के फ़कीरों का भी मज़ेदार वर्णन लिखता है वह भी सुनिये--