१११ शाहजहाँ का सबसे छोटा और चौथा लड़का मुरादबख्श था। यह पुरुष बहुत कम बुद्धि वाला था। खाने-पीने और आनन्द भोगने की रुचि थी, परन्तु बहादुर, पुरुषार्थी और सदा शस्त्र चलाने में लगा रहता था। वाण-विद्या में तो अपने फ़न का उस्ताद ही था। कई बार बड़े-बड़े भेड़ियों और रीछों को अपने हाथ से भाला मारने के शौक़ में अपने प्राण संकट में डाल चुका था। इसका कोई भाई शूरवीर इतना नहीं था । जब कभी लड़ाई का वर्णन आता तो उसे बड़ी प्रसन्नता होती और अपने हाथों और तलवार पर भरोसा रखता हुआ वह सदा दरबार की बातों को घृणा की दृष्टि से देखता था। और किसी की अपने सामने कुछ हस्ती नहीं समझता था। अपने अन्तिम दिनों में बादशाह अपने पुत्रों से भयभीत रहने लगा। वे सब बालिग और बाल-बच्चेदार थे। पर परस्पर उनमें प्रेम न था। दर- बार में भी प्रत्येक शाहज़ादे के पृथक्-पृथक् पक्षपातियों के दल थे । वह बहुधा उन्हें ग्वालियर के किले में कैद करने की सोचा करता था, पर उसे हिम्मत न होती थी। उसे ऐसा खयाल हो गया था कि या तो वे राजधानी में ही मारकाट मचावेंगे या पृथक् राज्य कायम करेंगे। उसने तीनों को दूर दूर प्रदेशों का सूबेदार बनाकर भेज दिया था। केवल दारा उसके पास था। तीनों शाहज़ादे पृथक्-पृथक् अपने अपने प्रान्तों में स्वतन्त्र बादशाह की भाँति रहते थे । वे सारी आमदनी स्वयं खर्च करते और सेना संग्रह करते थे। औरंगजेब के विषय में लिखा जा चुका है कि यह बड़ा तत्पर, ढोंगी, दूरदर्शी एवं मुस्तैद आदमी था। इसे एक ऐसा मित्र मिल गया जिसने इसके भाग्य का सितारा चमका दिया। इस आदमी का नाम मीर जुमला था। यह मनुष्य ईरानी था, और अत्यन्त साधारण व्यक्ति था। वह एक सौदागर के साथ उसके घोड़ों पर नौकर होकर गोलकुण्डे आया था। इसके बाद उसने जूते बेचने का काम किया। पर शीघ्र ही उसका भाग्य चमका और वह भारी व्यापारी सिद्ध हो गया। उसने धन भी बहुत इकट्ठा कर लिया और समुद्र में उसके अपने कई जहाज़ चलने लगे । अपनी बुद्धिमत्ता से दर- बार में भी प्रसिद्ध हो गया था। उसने शाह गोलकुण्डे को चीन से मँगवा- कर कुछ सौगातें दीं और कुछ अन्य बहुमूल्य भेट देकर उन्हें प्रसन्न कर लिया और कर्नाटक का हाकिम बना दिया गया । जहाँ उसने वहाँ के मन्दिरों के 1 1
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