पृष्ठ:भारत में इस्लाम.djvu/१२१

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- ११२ अटूट खज़ाने लूटकर बेतौल सम्पदा इकट्ठी की। इस प्रान्त में इसने 'लाल' की खान भी ढूंढ़ निकाली और वहाँ एक स्वतन्त्र, सशक्त फौज संगठित करली जिसमें फिरङ्गी तोपची थे। इन सब बातों से शाह इस आदमी से चौकन्ना हो गया, उसे ऐसा भी सन्देह हुआ कि शाही बेगमों से इस व्यक्ति का गुप्त सम्बन्ध है। एक बार उसने भरे दरबार में उसे दुर्वचन कहे । मीर जुमला शाह का रुख समझ गया, उसके औरंगजेब को एक खत-जो उस समय दक्षिण का सूबेदार था और औरंगाबाद में रहता था। उस खत का मजमून यह था- साहेब आलम, मैंने शाह गोलकुण्डा की वह बड़ी-बड़ी खिदमते की हैं कि जिन्हें तमाम ज़माना जानता है और जिनके लिये उन्हें मेरा बहुत मामून होना चाहिए। मगर इतने पर भी वह मेरी और मेरे खानदान की बर्बादी की फ़िक्र में हैं। इसलिये मैं आपकी पनाह लेना और आपके हुजुर में हाज़िर होना चाहता हूँ। और इस दरखास्त क़बूलियत के शुक्राने में जिसकी आपकी जानिब से पूरी उम्मीद है एक मनसूबा अर्ज करता हूँ। जिसके ज़रिये आप आसानी से बादशाह को गिरफ्तार करके मुल्क पर कब्जा कर सकते हैं। आप मेरे वादे की सच्चाई पर एतबार और भरोसा फ़र्माए । इन्शाअल्ला यह युक्ति न तो कुछ मुश्किल ही होगी और न कुछ खतरनाक ही। यानी आप पाँच हज़ार चुने हुये सवारों के साथ बहुत जल्द बिना तकल्लुफ़ कूच करते हुए गोलकुण्डा की तरफ चले आ जिसमें सिर्फ सोलह दिन लगेंगे । और यह मशहूर कर दें कि शाहजहाँ का सफीर शाहे गोलकुण्डा से जरूरी बातें तय करने आया है । यह फौज उसकी अरदली में है। वह शख्स जिसकी मार्फत हमेशा उमूर की इत्तला बादशाह को होती है मेरा क़रीबी रिश्तेदार है और उस पर मुझे कामिल भरोसा है। इसलिए मैं वादा करता हूँ कि एक ऐसा हुक्म जारी हो जायगा कि जिसकी बदौलत आप बिना सन्देह के भागकर-नगर के दरवाजे तक पहुँच जायेंगे । परन्तु जब बादशाह मामूल के मुआफ़िक़ फर्मान के इस्तकबाल के लिये जो सफ़ीर के पास हुआ करता है आये, तब उसे बाआसानी गिरफ्तार करके जो मुनासिब समझें उसके लिए तजवीज कर