पृष्ठ:भारत में इस्लाम.djvu/१३०

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१२१ से सब्ज़ बाग़ दिखाये और मुराद के पास ले जाकर उसे पेश किया और मुराद ही बादशाह है, यह भी प्रकट कर दिया। अब औरंगजेब ने सब अमीरों को मीठे-मीठे पत्र लिखकर अपने आधीन किया। उसका मामा शाइस्ताखाँ इस काम में उसका मददगार था। दारा ने एक बार इसका अपमान किया था उसका बदला उसने अब इस भाँति लिया। औरंगजेब सब काम मुराद के नाम से करता और प्रकट करता कि वह बिलकुल बेलौस है। दारा आगरे लौट गया । मगर वह बादशाह को मुंह न दिखा सका। पर बादशाह ने खबर सुन कर दारा को बहुत आश्वासन दिला भेजा और अपना प्रेम प्रकट किया, और यह भी कहा कि निराश न हो। सुलेमान शिकोह की सेना संगठित और व्यूहबद्ध है तुम तत्काल दिल्ली चले आओ। वहाँ के हाकिम को लिख दिया गया है। वह तुम्हें एक हजार हाथी, घोड़े देगा, कुछ धन भी देगा। तुम आगरे से दूर न जाना, बल्कि ऐसी जगह ठहरना जहाँ हमारे पत्र तुम्हें मिल सकें। पर दारा इतना शोकाकुल था कि उसने कुछ उत्तर न दिया। उसने अपनी बहिन के पास कुछ सूचनाएँ भेजी और आधी रात के समय अपनी स्त्री और बच्चों के तथा छोटे पुत्र सिफ़रशिकोह के साथ तीन चार सौ आदमी लेकर देहली को चल दिया। अब औरंगजेब ने सुलेमान शिकोह की सेना में फूट के बीज बोये । उसने एक पत्रराजा जयसिंह और दिलेरखाँ को लिखा, इसका आशय यहथा- "दारा तो बिल्कुल तबाह हो गया। वह बड़ा लश्कर जिसका उसे भरोसा था शिकस्त खाकर हमारे क़ब्जे में आगया । अब वह ऐसी बे सरो- सामानी से भागा जारहा है कि सवारों का एक रिसाला भी साथ नहीं। हम उसे जल्द गिरफ्तार कर लेंगे । हज़रत बादशाह इस क़दर अलील हैं कि अब सिर्फ चन्द रोज़ के मेहमान हैं । इसलिये इस हालत में अगर तुम हमारा मुक़ाबला करोगे तो नतीजा बजुज़ खराबी और हलातक के कुछ न होगा। इसके सिवा इस अबतर हालत में दारा की तरफ़दारी करना महज़ नादानी है । तुम्हारे हक़ में यही बेहतर है कि हमारे पास हाज़िर हो जाओ और सुलेमान शिकोह को गिरफ्तार करके अपने साथ लेते आओ।"