पृष्ठ:भारत में इस्लाम.djvu/१३३

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१२४ बादशाह दो दिन तक आगा पीछा सोचता रहा । धीरे-धीरे सब लोग उसे छोड़ छोड़ कर चले जा रहे थे। जब उसके निज के संरक्षकों ने भी उसे छोड़ दिया तो उसने चाबियाँ देदी और कहला भेजा- "अब समझदारी इसी में है कि औरंगजेब हम से आकर मिले । क्यों- कि सल्तनत के बाज़ बहुत जरूरी इसरार हम उसे समझाना चाहते हैं।" पर वह धूर्त अब भी न आया और तुरन्त एतबार खाँ नामक एक विश्वासी व्यक्ति को किलेदार नियुक्त करके भेज दिया, जिसने यहाँ पहुँच- कर सब बेगमों, बड़ी राजकुमारी बेगम साहिबा और स्वयं बादशाह को भी कैद कर लिया और क़िले के कई दरवाजे एक दम बन्द करा दिये । शाह- जहाँ के शुभचिन्तकों का आना-जाना और पत्र-व्यवहार कतई बन्द हो गया। और यह बिना क़िलेदार को सूचना भेजे कमरे से भी बाहर नहीं निकल सकता था। 1 अब औरंगजेब ने पर निकाले । उसने बादशाह को खत लिखा और सब को सुनाया। खत यह था- "यह बेअदबी मुझसे इसलिये सरज़द हुई है कि हुजूर ज़ाहिरा मेरी निस्बत इज़हारे-उल्फ़त व मिहरबानी फ़रमाते थे, और यह इर्शाद होता था कि दारा के तौर व तरीकों से हम सख्त नाराज़ हैं । मगर मुझे पुख्ता खबर मिली है कि हुजूर ने अशर्फियों से लदे हुए दो हाथी उसके पास भेजे हैं कि जिनसे वह नई फ़ौज भर्ती करके खूरेज लड़ाई को तवालत देगा । बस हुजूर ही गौर फ़र्माएँ कि मुझसे इन हरकतों के–जो फ़र्जन्दों के मामूली तरीके के खिलाफ़ और सख्त मालूम होते हैं-सरजद हो जाने का बाइस क्या दारा शिकोह की खुदसरी नहीं है ? इन बातों का सबब कि हुजूर कैद किये गये और मैं फ़र्जन्दाना खिदमत बजा लाने के लिये हुजूर की खिदमत में हाजिर न हो सका, क्या काफ़ी नहीं है ? मैं हुजूर से इल्तजा करता हूँ कि मेरी इस हरकत की जाहिरी सूरत पर ख्याल न फ़र्माकर सिर्फ चन्द रोज बर्दाश्त करें। ज्योंही दारा हुजूर को और मुझे तकलीफ़ देने के काबिल न रहेगा, मैं खुद किले की तरफ दौड़ा आऊँगा, और हुजूर के कैदखाने का दर्वाजा अपने हाथों खोल, हाथ जोड़कर अर्ज करूगा कि अब कुछ रोक-टोक नहीं है।"