१२५ इस प्रकार कठोरतापूर्वक जब बादशाह कैद हो गया तो सब अमीर औरंगजेब को सलाम करने उसके दरबार में जाहाजिर हुए। किसी ने बेचारे वृद्ध बादशाह की नमकहलाली का ख्याल नहीं किया । इनमें बहुत से ऐसे थे, जो बादशाह के धन से प्रतिष्ठित और धनी हुए थे। कुछ को बादशाह ने गुलामी से मुक्त करके उच्च पद दिये थे। इस प्रकार दोनों भाई पिता का बन्दोबस्त कर, और अपने मामा शाइस्ताखाँ को आगरे की सूबेदारी सौंप, खजाने से खर्च का इन्तजाम कर, दारा की खोज में आगरे से रवाना हुए। इस यात्रा का असल उद्देश्य कुछ और ही था। वह था मुराद का भुगतान करना । मुराद के हितैषी यह भेद पा गये थे, और उन्होंने मुराद से कहा भी कि अपने लश्कर-सहित आगरा-दिल्ली से दूर न जाइये । औरंगजेब दग़ा करेगा, जब वह खुद कहता है कि बादशाह आप हैं, तो फिर आपको क्यों राजधानी से दूर ले जाता है ? उसी को दारा के पीछे जाने दें। पर वह कुरान की क़स्मों और प्रतिज्ञाओं के ऐसे फेर में पड़ा था कि उसकी बुद्धि में यह बात नहीं जमी। दोनों ने कूच किया। जब मथुरा के पास पहुँचे तो औरंगजेब ने उसे अपने यहाँ भोजन का न्यौता दिया। मित्रों ने समझाया कि बीमारी का बहाना करके टाल जाय, पर उसने न माना। रात्रि को भोजन का सरंजाम था। औरंगजेब ने मीरखाँ आदि को ठीक-ठाक कर रखा था। जब मुराद पहुँचा तो औरंगजेब ने बड़ी आवभगत की । अपने हाथ से उसके मुंह की गर्द-पसीना पौछा । जब तक भोजन होता रहा, हँसी-मजाक की बातें होती रहीं। इसके बाद जब शराब के दौर चले, तो औरंगजेब ने उठते हुए मुस्कराकर कहा- "हज़रत को मालूम है कि मैं अपने मज़हबी खयालात के बाइस इस ऐशो-निशात की सोहबत में मौजूद नहीं रह सकता, ताहम ये लोग जो इस पुर-लुत्फ़ जलसे में शरीक हैं, मीर साहेब और दीगर मुसाहिब आपकी खिदमत गुज़ारी के लिये हाजिर रहेंगे।" निदान, मुराद को इतनी शराब पिलाई गई कि वह बेहोश हो गया। तब उसके नौकर लोग भी विदा कर दिये गये और कह दिया गया कि अब 1
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