पृष्ठ:भारत में इस्लाम.djvu/१३५

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- १२६ इन्हे यहाँ आराम करने दें। जब वह चले गये, तब उसके हथियार खोलकर कब्जे में कर लिये गये । इतने में औरंगजेब भी वहाँ आ गया, और सारा अदब-कायदा ताक में रख पाँच-सात ठोकर लगाईं और कहा-"तुम्हें शर्म नहीं आती-बादशाह होकर इतनी शराब पीते हो ! लोग मुझे भी क्या कहेंगे, जो तुम्हें बादशाह बनाने में मदद देता है।" इसके बाद उसने अपने आदमियों से कहा- "इस बदबख्त के हाथ-पाँव बाँध कर खिलवतखाने में ले जाओ, ताकि यह नशा उतरने तक वहीं बेशर्मी का सोना सोए।" तुरन्त आदमी टूट पड़े। उस समय मुराद बहुत चीखा-चिल्लाया, मगर पुख्ता हथकड़ी-बेड़ियों से जकड़ दिया गया, और बन्द कर दिया। चीखना-चिल्लाना सुन, उसके सेवक दाड़े, पर उनको एक नमकहराम सरदार मीर आतिशअली खाँ ने रोक दिया, जिसे लालच देकर औरंगजेब ने पहले ही वश में कर लिया था। यह घटना तत्काल ही लश्कर में फैल गई । औरंगजेब ने सब बड़े-बड़े सरदारों को बड़े-बड़े लालच देकर राजी कर लिया और मुराद को एक बन्द जनाना अम्बारी में दिल्ली भेजकर सलीमगढ़ में कैद कर दिया, जो उस समय जमना के बीचों-बीच टापू में था । यह कर, वह दारा के पीछे दौड़ा, जो लाहौर को तेजी से जा रहा था और वहाँ किलेबन्दी कर सैन्य-संग्रह करना चाहता था। पर औरंगजेब इतनी तेजी से पीछे दौड़ा कि दारा को वहाँ किलेबन्दी का अवकाश न मिला, आर वह मुल्तान की ओर भाग गया। यद्यपि भयानक गर्मी पड़ रही थी, पर औरंगजेब की सेना रात-दिन कूच कर रही थी। वह स्वयं पाँच-छ: कोस आगे चलता, सूखे टुकड़े खाता और जमीन पर लेटता था। दारा ने यहाँ भी भूल की। यदि वह काबुल चला जाता, तो उसे बहुत-कुछ आशा थी। वहाँ प्राचीन सरदार महावतखाँ था, जो औरंगजेब का दोस्त भी न था। उसके आधीन दस हजार जबर्दस्त सेना थी । दारा के पास अब भी धन-रत्न की कमी न थी। वहाँ से ईरान और उजबक देश भी निकट थे, जहाँ से उसे बहुत सहायता मिल सकती थी। उसे इस ऐतिहासिक बात का खयाल करना उचित था कि जब शेरशाह ने हुमायू को 1