१४५ 1 1 बादशाह इस बातचीत से बहुत नाराज़ हुआ। उसने हुक्म दिया कि यदि वह अपने विचार न बदले तो इसकी गर्दन काट ली जाय। तमाम दर- बारियों ने समझाया कि वह इन तीन बातों से तौबा करले । लेकिन सरमद ने साफ़ कह दिया कि मैं अपने में कोई ऐब या चोरी-कपट नहीं देखता कि तौबा करूं। मेरा आत्मविश्वास मेरे साथ है, और वह पवित्र है, जो किसी के मार्ग में बाधा नहीं डालता । मैं तौबा नहीं करूंगा। उसके बाद जल्लाद को बुलाया गया। उस ज़माने में जल्लाद सुर्ख पोशाक में आया करते थे । सरमद ने जल्लाद को सुर्ख कपड़ों में आते देखा तो बहुत हँसा और मौज में आकर उसने यह शेर पढ़ा- बहर रंगे के ख्याही जामा मे पोश । मन अज़ ज़बाए क़द्दत मे शनासम । (जिस रंग के तेरा जी चाहे कपड़े पहन ले, मैं तो तेरे क़द की खूब- सूरती से तुझे पहचानता हूँ।) निदान, जल्लाद ने बढ़कर एक हाथ मारा और उसकी गर्दन से सिर अलग होगया । कहते हैं गर्दन बजाय ज़मीन पर गिरने के एक नेजा ऊँची हो गई और उस वक्त भी एक शेर उसके मुह से निकला- सर ज़ दा कर्द अज तनम् शोखे कि बामा यार बूद क़िस्सा कोताह गश्त वरना दर्द-सर में बिसियार बूद । (सर मेरा उस माशूक ने जुदा किया, जो मेरा बहुत दोस्त था। चलो, क़िस्सा खतम हुआ, वरना बड़ी सिर-दर्दी थी।) मुसलमानी किताबों में आलिमों ने इस काम को अच्छी नज़र से नहीं देखा । मुसलमान अब तक सैयद सरमद के औलिया होने के कायल हैं। उनका मजार दिल्ली में पूर्वी दरवाजे को तरफ़ जामा मस्जिद के सामने हरे- भरे पीर के पास ही है, जहाँ आज तक हिन्दू-मुसलमान उनकी ज़ियारत करते हैं । किसी मुसलमान शायर ने यह शेर भी लिखा है- सर कटा है जब से सरमद का। तख्त नाराज हो गया है हिन्दू का। -
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