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पृष्ठ:भारत में इस्लाम.djvu/१६३

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१५४ . यह एक विकरालकाय योद्धा था और छल से शिवाजी को क़त्ल किया चाहता था, पर शिवाजी ने ही उसे मार डाला। यह उस समय की घटना है, जब औरङ्गजेब दक्षिण का सूबेदार था। शिवाजी को उस समय औरङ्गजेब ने उत्तेजना दी, क्योंकि वह बीजापुर की हानि में प्रसन्न था। शिवाजी ने शीघ्र ही कोंकण प्रदेश जीत लिया। जब औरङ्गजेब पिता के विरुद्ध आगरे पर चढ़ने लगा तो उसने शिवाजी से भी सहायता चाही। पर शिवाजी ने उसके इस नीच काम का खूब तिरस्कार किया, और उसके पुत्र को कुत्ते की पूछ से बँधवा दिया। बस, वहीं से औरङ्गजेब के हृदय में बैर का बीज बैठ गया। उधर औरङ्ग- जेब गद्दी पर बैठा और इधर चतुर शिवाजी ने बीजापुर वालों से सन्धि कर ली। अब उसने मुग़ल प्रान्तों पर आक्रमण करने प्रारम्भ कर दिये। उन दिनों दक्षिण में मुग़ल सूबेदार नवाब शाइस्तखाँ था। औरङ्गजेब ने उसे शिवाजी का दमन करने का हुक्म भेज दिया। शाइस्ताखाँ एक बड़ी सेना लेकर शिवाजी पर टूट पड़ा। उसने कोंकण-प्रदेश के सभी किले कब्जे में कर लिये। फिर उसने पूना पहुँचकर उस भवन को भी अधिकार में ले लिया, जिसमें शिवाजी का जन्म हुआ था। शिवाजी चुपचाप तमाशा देखते और अवसर ताकते रहे। एक दिन अकस्मात् शिवाजी रात को शाइस्ताखाँ के घर में जा धमके । जब वे जनान- खाने में पहुँचकर तलवार चलाने लगे, तब स्त्रियों ने नवाब को जगाया। वह हक्का-बक्का हो गया, और खिड़की से कूदकर भागा। फिर भी उसकी उँगलियाँ कट गईं, और पुत्र मारा गया। सेवक भी काट डाले गये । इस घटना से शाइस्ताखाँ ऐसा भयभीत हुआ कि सीधा दिल्ली चला आया। इसके बाद शिवाजी ने सूरत नगर को लूट लिया, जो दक्षिण में मुग़लों का समृद्धिशाली बन्दरगाह था। यहाँ शिवाजी को अटूट सम्पदा मिली, जिससे कोंकण की सारी कसर निकल गई। इसके बाद रायगढ़ लौटकर उन्होंने राजा की उपाधि ग्रहण की। इस उत्सव में शिवाजी ने लगभग पाँच करोड़ रुपया व्यय किया। अब उनके नाम का सिक्का चलने लगा।