पृष्ठ:भारत में इस्लाम.djvu/१६५

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1 - - १५६ रूढ़ होने पर शाही फर्मान राजधानी से बाहर जाकर स्वीकार करेगा। तब से मुग़ल दरबार में मेवाड़ के युवराज हाजिर होते रहे थे। अमरसिंह की मृत्यु पर राणा कर्ण गद्दी पर बैठे। उन्होंने सन्धि की शान्ति से लाभ उठाकर देश को हरा-भरा कर दिया। कर्ण के छोटे भाई का मुग़ल-दरबार में इतना पद बढ़ा कि वे मुग़ल-सेना के प्रधान सेनापति बनाये गये और सुल्तान खुर्रम के मन्त्री बनाये गये। उन्हें राजा का पद दिया गया था। आठ वर्ष राज्य करके राणा कर्ण स्वर्गवासी हुए। उस समय खुर्रम मेवाड़ में शरणागत थे । राणा ने उन्हें सम्राट् स्वीकार किया और शाहजहाँ की पदवी दी। इस अवसर पर जगतसिंह से शाहजहाँ ने पगड़ी बदलकर भाईचारा स्वीकार किया था। उस मैत्री को शाहजहाँ ने जन्म-भर निबाहा । जगतसिंह ने छब्बीस वर्ष मेवाड़ पर राज्य किया और मुग़ल आक्रमणों के सब चिन्हों को मिटा देने की चेष्टा की। वह बहुत उदार, मिलनसार और सभ्य व्यक्ति थे। इन्होंने मेवाड़ को खूब सुन्दर-समृद्ध बना दिया । इनकी मृत्यु पर राजसिंह गद्दी पर बैठे । ये सिंह के समान पराक्रमी योद्धा थे। औरङ्गजेब के पिता-विद्रोह के युद्ध में इन्होंने बादशाह का पक्ष लिया था। परन्तु भाग्यवश औरङ्गजेब ही बादशाह हुआ। हम कह चुके हैं कि अकबर से लेकर शाहजहाँ तक मुग़ल-बादशाहों ने इन हिन्दू राजाओं से उदार नीति बरती थी। पर औरङ्गजेब ने वह नीति त्याग दी । अकबर ने राजपूतों से वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित करके प्रेम और विश्वास एवं ऐक्य की जड़ें जमाली थी, तथा राजपूतों को मित्र एवं सम्बन्धी बना लिया था, और उन्होंने पीढ़ियों तक मुग़ल-साम्राज्य के विस्तार करने में अपने जीवन व्यतीत किये। पर औरङ्गजेब ने उस मुग़ल-साम्राज्य की जड़ें हिलादीं-स्तम्भों को उखाड़-उखाड़कर फेंकना शुरू कर दिया। जिस समय औरङ्गजेब गद्दी पर बैठा, राजपूताने में एक-से-एक बढ़- कर शक्तिशाली पुरुष उत्पन्न हो गये। अम्बराधिपति जयसिंह, मारवाड़ा- धीश्वर जसवन्तसिंह, बूंदी और कोटा के हाड़ा सरदार, बीकानेर के राठौर, ओरछा और दतिया के बुन्देले, एक-से-एक बढ़कर शूर थे-जो सभी और- ङ्गजेब से अप्रसन्न हो गये।