पृष्ठ:भारत में इस्लाम.djvu/१७५

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१६६ इश और तरक्की ही एक ऐसी चीज है, जिसकी फ़िक्र मुझे होनी चाहिये । मगर यह शख्श इस बात की तह को नहीं पहुँचा कि उस आराम से, जो यह मेरे लिये तजबीज करता, क्या-क्या कहावतें पैदा होंगी, और यह भी इसे नहीं मालूम कि दूसरों के हाथ में हुकूमत देना कैसी बुरी बात है। शेख सादी ने जो यह कहा कि बादशाहों को चाहिये कि नवाब खुद कारोबार- सल्तनत का बोझ अपने ऊपर ले नहीं तो बेहतर है कि बादशाह कहलाना छोड़ दे, तो क्या बुजुर्ग का यह क़ौल ग़लत है ? बस, आप अपने इस दोस्त से कह दीजिए कि अगर यह हमारी खुशी और हमसे आफ़री हासिल करना चाहता है तो जो काम इसके सुपुर्द है, उसे ठीक तौर से करता रहे, और खबरदार यह सलाह जो बादशाहों के सुनने के लायक नहीं हैं, कभी न दे ! अफ़सोस, इन्सान आराम-तलब है, और ऐसे खयालात से बचना चाहता है, जो दूसरों की तरक्की की फ़िक्र में आदमी को घुला डालते हैं। मगर हमको ऐसे फ़िजूल सलाहकारों की हाजत नहीं है । ऐशो-आराम की सलाह तो हमारी बेगमें भी दे सकती हैं।" एक बार औरङ्गजेब के गुरु मुल्ला सालह ने, जिसने बचपन में उसे शिक्षा दी थी-यह सोचा कि अब मेरा शागिर्द बादशाह हुआ है, कुछ-न- कुछ जागीर देगा, और वह अमीरों की श्रेणी में रख लिया जायगा। उसने बड़ी-बड़ी सिफ़ारिशें पहुँचाईं और सभी दरबारियों तथा अमीर-उमरावों को अपने पक्ष में कर लिया। यहाँ तक कि बेगम रोशनआरा तक को पक्षपाती बना लिया, और उसने कई बार बादशाह को याद दिलाया कि आपका माननीय विद्वान् उस्ताद प्रतिष्ठा किये जाने के योग्य है। पर बादशाह ने तीन महीने तक तो उसकी ओर आँख उठाकर भी नहीं देखा। अन्त में उसने एक दिन दरबारे-खास में हाजिर होने का हुक्म दिया। वहाँ कुछ चुने हुए अमीर हाजिर थे। वहाँ बादशाह ने कहा- "मुल्लाजी, बराए मेहरबानी यह तो फ़रमाइये कि आप हमारे से चाहते क्या हैं ? क्या आपका यह दावा है कि हम आपको दरबार के अब्वल दर्जे के उमरा में दाखिल करलें ? अगर आपकी यह ख्वाहिश है, तो पहिले इस बात का हिसाब करना ज़रूरी है कि आप किसी निशाने-इज्जत के मुस्तहक़ अभी हैं या नहीं। हम इससे इन्कार नहीं करते कि अगर आप