१७३ इसका यह नियम है कि चौबीस घण्टे में एक बार भोजन करता है, और केवल तीन घण्टा सोता है। सोने के समय बाँदियाँ उसकी रक्षा करती हैं, जो बड़ी वीर तथा तीर-कमान और हथियारों के प्रयोग में खूब प्रवीण होती हैं। प्रतिदिन शाही बावरची को खाने के खर्च के लिये एक हजार रुपया दिया जाता है । अफ़सरों को इस रकम में से आवश्यक सामान जुटाना पड़ता है। शाही दस्तरखान् पर एक नियत संख्या में भिन्न-भिन्न प्रकार के स्वादिष्ट मांस भिन्न-भिन्न प्रकार के चीनी के प्यालों में-सुनहरे बर्तनों में रखकर पेश किये जाते हैं, और जब बादशाह को किसी बेगम, शाहजादी या जन- रल पर विशेष कृपा प्रकट करनी हो, तो इनमें से या और किसी चीज़ में से उसे भेज देता है। पर इस प्रतिष्ठा का मोल उन्हें बहुत देना पड़ता है । क्योंकि ख्वाजासरा, जो यह खाना लेकर जाते हैं, उनसे भारी रक़म इनाम में प्राप्त करते हैं । जब बादशाह शत्रु के देश में हो, तो यथा सम्भव बावरची- खाने के खर्च का कुछ हिसाब नहीं लिखा जाता, परन्तु महल में बेगम और शहजादियाँ तथा अन्य स्त्रियों के लिये पृथक् वजीफ़ नियत होते हैं । किन्तु बादशाह के महल में कई हिन्दू राजाओं की लड़कियाँ भी हैं, जिन्हें हिन्दू नाम दिये गये हैं । इसी तरह, जैसी उसकी इच्छा हो, मुसलमानों को वह इस्लामी नाम देता है। बादशाहों और मुग़ल-शाहज़ादों में यह भी दस्तूर है कि वह बुड्ढी स्त्रियों से जासूसी का काम लेते हैं, और यह भी उसी ढंग के ख्वाजासराओं को राज्य-भर की सुन्दरी स्त्रियों के पते देती रहती हैं, जिन्हें यह बुढ़ियाएँ धोखा, फ़रेब या लालच से, जैसे बन सके, महल में ले आती हैं । जहाँ बादशाह या शाहजादे की इच्छा हो, वहाँ उन्हें आशना लोगों की पंक्ति में रखा जाता है। जैसा कि मैं शाहजहाँ और दारा के वर्णनों में कह आया हूँ-जब ऐसा संयोग होता है कि वह इन्हें महल में रखना न चाहें, तो इन्हें कोई भारी नजराना देकर वापस भेज देते हैं। मैं इन घटनाओं का उल्लेख कर रहा हूँ-क्योंकि मुझे इन गुप्त रहस्यों और अन्य कई बातों के सम्बन्ध में खास खबर है, जिनका उल्लेख करना मैं उचित नहीं समझता । "यद्यपि औरङ्गजेब ने प्रत्येक प्रकार के राग-रङ्ग को बन्द कर दिया
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