पृष्ठ:भारत में इस्लाम.djvu/१८३

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१७४ स्व र मु म - . 1 है, फिर भी बेगम और शाहज़ादियों के मनोरंजन के लिये कई-एक नाचने और गानेवालियाँ नौकर हैं। "बहुधा ये गानेवाली उस्तादनियाँ जन्म से हिन्दू होती हैं, जिन्हें बचपन में घरों से भगा लिया जाता है। यद्यपि उनके नाम हिन्दुआना है, पर हैं सब मुसलमान। इनमें से प्रत्येक की आधीनता में लगभग १० शिष्यायें होती हैं, जिनके साथ वे भिन्न-भिन्न बेगमों, शाहज़ादियों और आशनाओं के महल से उपहार लेती रहती हैं, और प्रत्येक को अपनी स्थिति के अनुसार दर्जा मिला होता है। "बेगम और अन्य महिलाएं अपनी-अपनी गानेवालियों के साथ अपने-अपने महलों में समय काट लेती हैं। इन गानेवालियों को सिवाय अपनी मालिका के और किसी के यहाँ गाने की आज्ञा नहीं होती; सिवाय उस सूरत के जब कि कोई भारी त्यौहार हो। तब वे सब-की-सब एक ही होती हैं, और उस त्यौहार पर कुछ-न-कुछ गाने का हुक्म दिया जाता है। ये स्त्रियाँ सभी सुन्दरी, उत्तम वस्त्रा-भूषणों से सज्जिता होती हैं, मस्तानी चाल से चलती हैं, और बात-चीत में बड़ी गुस्ताख, हाजिर-जवाब, और अत्यन्त वासनायुक्त होती हैं, क्योंकि गाने के सिवाय इनका काम सिवाय व्यभिचार के और कुछ होता ही नहीं। “महल के दैनिक खर्च की तादाद कभी एक करोड़ रुपये से कम नहीं होती। यह रक़म प्रकट में यद्यपि बहुत बड़ी है, पर इतनी बड़ी नहीं रहती, जब यह समझ लिया जाय कि हिन्दुस्तान के सब लोग सुगन्ध और पुष्पों के बहुत शौक़ीन हैं, और भिन्न-भिन्न जाति के इत्रों, सुगन्धित तेलों की सुगन्धि और रूहों पर बहुत-सा रुपया खर्च करते हैं । इसके बाद पान का खर्च है, जो इनके मुह में देखा जाता है। स्मरण रहे, कि यह रोजाना के खर्च हैं। इसमें वह रुपया भी सम्मिलित होना चाहिए, जो जवाहारात की खरीद में खर्च होता है, और यही कारण है कि सुनारों को जेबर तैयार करने से फुरसत नहीं मिलती। इन जवाहरातों में से अनेक अत्यन्त बहुमूल्य और दुष्प्राप्य हैं, जो बादशाह और बेगमों तथा शाह- जादियों के निजू इस्तेमाल में आते हैं। ये बेगमें और शाहज़ादियाँ अपने- अपने जवाहिरातों को देख-देखकर प्रसन्न होती और दूसरों को दिखाने की