मुहम्मद साहब ने मक्का में यह घोषणा कराई थी—"जिन लोगों ने अरब देश में अब तक इस्लाम धर्म स्वीकार नहीं किया है उन्हें चाहिए कि चार मास के भीतर-भीतर कल्मा पढ़ लें या अरब को छोड़कर चले जाये। चार महीने बाद यदि कोई क़ाफ़िर अरब में दिखाई देगा तो उसका सिर काट लिया जायगा। इसमें मुसलमानों के मित्रों, रिश्तेदारों और भाइयों का भी लिहाज़ नहीं किया जायगा।"
यमन का इलाका अभी मुसलमान नहीं हुआ था, वहाँ मुहम्मद साहब ने अली इब्ने अबितालिब को फौज लेकर भेजा। उन्होंने अली से कुछ प्रश्न किए तो अली ने तलवार निकाल कर कहा---इस्लाम का जवाब यह तलवार है---और कई विद्धानों के सिर काट लिये। इससे भयभीत होकर सारा यमन मुसलमान हो गया।
वह मदीने में मरा। मृत्यु के समय उसका सिर आयशा की गोद में था। वह बार-बार पानी के बर्तन में अपने हाथ डुबोता था और अपने चेहरे को तर करता था। उसे तीव्र ज्वर और सन्निपात था। अन्त में उसका दम टूटा। उसने आकाश की ओर टकटकी लगाये हुए टूटे-फूटे शब्दों में कहा---"हे ईश्वर, मेरा पाप क्षमा कर। एवमस्तु। मैं आता हूँ।"
मृत्यु के समय उसकी आयु तिरेसठ वर्ष की थी। उसने अपने अन्तिम दस वर्षों में चौबीस युद्ध स्वयं अपने सेनापतित्व में तथा पाँच-छ: दूसरों का आधीनता में कराये तथा कुल एक लाख चौदह हजार स्त्री-पुरुषों को मुसलमान बनाया। मृत्यु के समय उसके सम्बन्धियों में चार पुत्रियाँ, चार पुत्र, ८ बाँदियाँ, अठारह स्त्रियाँ, दो दाइयाँ, पाँच भाई, दो बहिन, छ फूफियाँ, बारह चचा, चालीस लेखक, अठावन दास, सोलह सेविकाएँ, सत्ताईस सेवक, आठ द्वारपाल, आठ वकील, पंद्रह बांगी, चार कविता करने वाली स्त्रियां और एकसौ छियानवे कवि थे।
सम्पत्ति में---एक सिंहासन, अनेक लाठियाँ, दो पताकाएँ, छः घनुष, चार भाले, तीन किरीट, तीन ढालें, साठ कवच, दस तलवारें, अनेक वस्त्र, सत्तर भेड़ें, इक्कीस ऊँटनियाँ, तीन गधे, चार खच्चर, बीस उम्दा घोड़े, सात प्याले, एक सिंगार का डब्बा और एक तकिया था।