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खलीफ़ा-अबूबकर
मुहम्मद साहब ने मृत्यु के समय अपना कोई उत्तराधिकारी न चुना था। इस कारण उसकी मृत्यु होते ही सर्वत्र हलचल मच गई। इस पर असाम्म इब्नेज़ैद ने इस्लाम का झंडा आयशा के दर्वाजे पर खड़ा कर दिया और हथियारबन्द पहरेदार नियत कर दिये। अब यह विचार हुआ कि किसे उत्ताधिकारी चुना जाय।
अबूबकर, उमर, उस्मान और अली ये चार आदमी गद्दी के अधि- कारी समझे गये। खानदान और योग्यता की दृष्टि से अली का हक़ था। पर कुछ लोग अबूबकर को, कुछ उमर को और कुछ उस्मान को चुनना चाहते थे। इसके निर्णय के लिए पंचायत बुलाई गई। उसने यह निर्णय किया कि खलीफ़ा मक्का के कुरेशों में से बनाया जाय और मन्त्री अन्सारी बनाये जाया करें। इस निश्चय के अनुसार अबूबकर और उमर में से कोई भी खलीफा हो सकता था। पर जब इस पर झगड़े होने लगे तो उमर ने आगे बढ़कर अबूबकर को सलाम किया और उनका हाथ चूम कर कहा, "आप हम सबसे बड़े, योग्य व बुद्धिमान् हैं, इसलिए आपके रहते कोई आदमी खलीफा नहीं बनाया जा सकता। इस प्रकार अबूबकर प्रथम खलीफा चुना गया।"
मृत्यु के समय मुहम्मद साहब का विचार सीरिया और फारस की विजय का था और वे इसकी तैयारी कर चुके थे। अबूबकर ने खलीफ़ा होते ही ये आज्ञायें प्रचलित की:-
"अत्यन्त कृपालु ईश्वर के नाम से प्रारम्भ करता हूँ। अबूबकर शेष
सब मुसलमानों को तन्दुरुस्ती और खुशी की दुआ देता है। ईश्वर तुम पर