पृष्ठ:भारत में इस्लाम.djvu/२१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१२
 

दया करे और तुम्हें आनन्द में रक्खे। मैं ईश्वर की प्रशंसा करता हूँ। इस राजाज्ञा द्वारा तुमको सूचना दी जाती है कि, मैं सच्चे मुसलमानों को सीरिया देश भेजना चाहता हूँ कि वे जाकर उसे काफ़िरों के हाथ से छीन लें और मैं जानना चाहता हूँ कि धर्म के वास्ते लड़ना मानो ईश्वरीय आज्ञा मानना है।"

इसके बाद ही सेनापति वली इब्ने अविसफ़ायान ने शाम देश को घेर लिया। युद्ध हुआ। बादशाह की सेना हार गई उसके सेनापति तथा बारह हजार सैनिक काम में आये। लूट का बहुत-सा माल मुसलमानों के हाथ लगा जो ख़लीफ़ा के पास भेज दिया।

सेनापति खलीद इब्न ने सीरिया को फ़तह किया। मूर्त्ति-पूजकों के प्रति अति उग्र क्रोध उसके मन में था। वह कहा करता था, "मैं उन ईश्वर-निन्दक मूर्त्ति पूजकों की खोपड़ी चीर डालूँगा, जो ऐसा कहते हैं कि अत्यन्त पवित्र सर्व-शक्तिमान् ईश्वर ने पुत्र उत्पन्न किया है।"

उसने दस हजार योद्धाओं को साथ लेकर 'हीरा' नगर पर आक्रमण किया और वहाँ के ईसाई बादशाह को मार गिराया। बादशाह के मरने पर नगर-वासियों ने सत्तर हज़ार मुहरें वार्षिक कर मुसलमानों को देना स्वीकार किया। इस नगर पर अधिकार कर, उसने फ़िरात नदी पर छावनी डाली और ईरान के बादशाह को लिखा कि या तो मुहम्मदी क़ल्मा पढ़ो या 'जज़िया' दो, परन्तु उसे तत्काल बसरे की चढ़ाई में योग देने को बुलाया गया क्योंकि शाम देश की बादशाह हरक्यूलस ने मुकाबिले के लिये भारी सेना का संग्रह किया था। वह फ़ौरन पन्द्रह हजार चुने हुए सवार लेकर पहुँचा। उधर ख़लीफ़ा ने कई हजार योद्धा और भेज दिये! बसरे पर धावा बोल दिया गया।

बसरा उन दिनों रोम साम्राज्य का एक भारी दुर्ग था। इसी नगर के सामने मुसलमानी सेना ने छावनी डाली। किला बहुत मज़बूत था और रक्षक सेना भी बलवान थी। उसका अध्यक्ष रोमेनस विश्वासघात करके मुसलमानों से मिल गया और किले का फाटक खोल दिया। एक व्याख्यान में अपने भाइयों से कहा:-

"मैं तुम्हारा साथ छोड़ता हूँ। इस लोक के लिये और परलोक के लिए भी। मैं उसको नहीं मानता, जो सूली पर चढ़ाया गया था और उनको