भी नहीं मानता, जो उसको पूजते हैं। मैं ईश्वर को अपना मालिक बनाता हूँ और इस्लाम को अपना धर्म, मक्का को अपना धर्म-मन्दिर, मुसलमानों को अपना भाई और मुहम्मद को पैग़म्बर मानता हूँ।"
यह रोमेनस उन हज़ारों विश्वासघातियों में से एक था, जिन्होंने फ़ारस की विजयों में अपना धर्म खो दिया था।
बसरा से सीरिया की राजधानी दमिश्क सत्तर मील थी। यह शहर बड़ा धनाढ्य, बड़ा गुलजार और व्यापार का केन्द्र था। यहाँ का रेशम और गुलाब का इत्र दुनिया भर में प्रसिद्ध था। ख़लीद अपने पन्द्रह हजार सवारों को लेकर दमिश्क की तरफ़ चला। उसने शरजील तथा अबू अबीदा को, जिन्हें वह फरात नदी के निकट छोड़ आया था, चुपचाप लिखा कि वे तत्काल अपनी पूरी फौज लेकर दमिश्क को घेर लें। उन्होंने तीन हजार सात सौ फौज लेकर कूच किया और नगर को घेर लिया। उन्होंने नगरवासियों को सूचना दी कि तत्काल मुसलमान हो जाओ या धन-दण्ड दो, अन्यथा युद्ध करो। बादशाह हरक्यूलस वहाँ से डेढ़ सौ मील दूर एण्टीऑक के महल में था। उसने ख़लीद के पन्द्रह सौ सवारों का आक्रमण समझ कर पाँच हज़ार सेना भेज दो। उसका सरदार जनरल केलूस था। उसका नगर शासक अज़राईल से मतभेद था। जब उसने चालीस हज़ार सेना के प्रचण्ड बल को देखा, तो वह भयभीत हो गया और विश्वासघात करके ख़लीद से कहला भेजा कि अज़राईल को मारते ही नगर पर क़ब्ज़ा हो जायगा। अज़राईल यद्यपि वृद्ध था, पर मैदान में डट गया और वीरता से लड़ा। पर ख़लीद ने दोनों को पकड़ कर क़ैद कर लिया और मुसलमान होने को कहा। अन्त में इन्कार करने पर उन्हें क़त्ल कर दिया।
इस घटना से नगर में हलचल मच गई। नगर के फाटक बन्द कर लिये गये। बादशाह ने ख़बर पाकर एक लाख सेना भेजी। परन्तु खलीद ने मार्ग ही में छल-बल से उसे छिन्न-भिन्न करके परास्त कर दिया और सारी युद्ध-सामग्री छीन ली। इस सेना के दो ईसाई नायक पीटर और पॉल वीरता से लड़े और बहुत से मुहम्मदी सैनिकों को काट डाला। पीछे पॉल गिरफ्तार कर लिया गया और पीटर भाले से छेद कर मार डाला गया। पॉल से मुसलमान होने को कहा गया तो उसने कहा कि मैं "लुटेरों और खूनियों के धर्म को स्वीकार न करूँगा।" इस पर इसका सिर काट लिया ग़या।