पृष्ठ:भारत में इस्लाम.djvu/२१४

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२०५. विभागों के दारोगा और छोटी श्रेणी के ओहदेदार बैठे हुए अपना काम करते रहते हैं, और वह मन्सबदार भी, जो रात के साथ पहरा देने आते है, यहीं ठहरते हैं। पर इनके नीचे से आने-जानेवाले सवारों और साधारण लोगों को इससे कोई कष्ट नहीं होता। "क़िले की दूसरी ओर के फाटक के अन्दर और भी ऐसी-ही लम्बी- चौड़ी सड़क है । उसके भी दोनों ओर ऐसे-ही चबूतरे हैं। पर मेहराबदार दालानों के स्थान में वहाँ दुकानें बनी हुई हैं। सच पूछिये, तो यह एक बाज़ार है, जो लदाव की छत के कारण, जिसमें ऊपर की ओर हवा और प्रकाश के लिये रोशनदान बने हुए हैं, गर्मी और बरसात के काम की जगह है। "इन दोनों सड़कों के अतिरिक्त इसके दाहिनी और बाई ओर भी अनेक छोटी-छोटी सड़कें हैं, जो उन मकानों की ओर जाती हैं, जहाँ निय- मानुसार उमरा लोग सप्ताह में बारी-बारी से पहरा दिया करते हैं। यह मकान, यहाँ उमरा लोग चौकी देते हैं, अच्छे हैं । इनके सहन में छोटे-छोटे बाग़ हैं, जिनमें छोटी-छोटी नहरें, हौज और फ़व्वारे बने हुए हैं । जिस अमीर की नौकरी होती है, उसके लिये भोजन शाही खज़ाने से आता है। जब भोजन आता है, तो अमीर को धन्यवाद और सम्मान-स्वरूप महल की ओर मुंह करके तीन बार आदाब बजा लाना, अर्थात् जमीन तक हाथ ले जाकर माथे तक ले आना होता है। इनके अतिरिक्त भिन्न-भिन्न स्थानों में सरकारी दफ्तर के लिये दीवानखाने बने हुए हैं, और खेमे लगे हुए हैं, जिनके प्रत्येक भाग में किसी अच्छे कारीगर की निगरानी में काम हुआ करता है। किसी में चिकनदोज़ और जरदोज आदि काम करते हैं, किसी में सुनार, किसी में चित्रकार और नक्काश, किसी में रंगसाज, बढ़ई और खरादी, किसी में दर्जी और मोची, किसी में कमखाब और मखमल बुनने- वाले और जुलाहे, जो पगड़ियाँ, कमर के बाँधने के फूलदार पटके और जनाने पायजामों के लिये बारीक कपड़ा बनाते हैं-बैठते हैं। यह कपड़ा इतना महीन होता है, कि एक-ही रात व्यवहार में लाने से बे-काम हो जाता है। यह २५)-३०) मूल्य का होता है । जब इस पर सुई से बढ़िया जरी का काम किया जाता है, तो इसका मूल्य और भी अधिक हो जाता है । ये सब 1