पृष्ठ:भारत में इस्लाम.djvu/२१५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२०६ कारीगर सबेरे से आकर अपना-अपना काम करते हैं, और शाम को अपने घर चले जाते हैं । इसी दिनचर्या में इन लोगों का जीवन व्यतीत हो जाता है। जिस अवस्था में ये लोग जन्म लेते हैं, उसमें उन्नतिशील होने की चेष्टा तक नहीं करते । चिकनदोज आदि अपनी सन्तान को अपना ही काम सिखलाते हैं । सुनार का लड़का सुनार ही होता है । शहर का हकीम अपने पुत्र को हकीमी ही सिखलाता है। यहाँ तक कि कोई व्यक्ति अपने लड़के या लड़की का विवाह अपने पेशेवालों के अतिरिक्त और किसी के घर नहीं करता। इस नियम का पालन मुसलमान भी वैसा ही करते हैं, जैसा कि हिन्दू; जिनके शास्त्रों की यह आज्ञा है । इसी कारण से बहुत-सी सुन्दर लड़कियाँ कुमारी ही रह जाती हैं । उनके माता-पिता यदि चाहें, तो उन लड़कियों का विवाह बहुत अच्छी जगह हो सकता है । "अब मैं दरबार खास व आम का वर्णन उचित समझा हूँ-जो इन मकानों के आगे मिलता है। यह इमारत बहुत सुन्दर और अच्छी है । यह एक बड़ा-सा मकान है, जिसके चारों ओर महराबें हैं, और यह 'पैलेस- रॉयल' से मिलता है। पर भेद इतना ही है कि इसके ऊपर कुछ इमारत नहीं है । इसकी महराबें ऐसी बनी हुई हैं कि एक महराब से दूसरी मह- राब में जा सकते हैं। इसके सामने एक बड़ा दरवाजा है, जिसके ऊपर नक्कारखाना बना हुआ है। इसमें शहनाई, नफ़ीरियाँ और नक्कारे रखे हैं । इसी से लोग इसे नक्कारखाना कहते हैं, जो दिन और रात को नियत समय पर बजाये जाते हैं। यह नक्कारे एक-साथ बजाये जाते हैं। इसमें सब से बड़ी नफ़ीरी-जिसको 'करना' कहते हैं, ६ फ़ीट लम्बी है, और इसके नीचे का मुह एक फ्रान्सीसी फुट से कम नहीं है। लोहे या पीतल के सबसे छोटे नक्क़ारे की गोलाई कम-से-कम छ: फ़ीट है। इससे आप समझ सकते हैं, कि इस नक्कारखाने से कि इतना शोर होता होगा । जब मैं पहले- पहल यहाँ आया, तो शोर के मारे कान बहरे हो गये। अभ्यास के कारण अब मैं उसे बड़े चाव से सुनता हूँ। विशेषतः रात के समय, जबकि मकानकी छत पर लेटे हुए इसकी आवाज दूर से सुनाई देती है, तो बहुत-ही सुरीली और भली मालूम होती है। और यह कोई आश्चर्य की बात भी नहीं है, कारण कि इसके बजाने वाले बचपन ही से इसकी शिक्षा पाते और इन