२०७ 1 बाजों की आवाज को ऊँचा-नीचा करने और सुरीली तथा लय-पूर्ण बनाने में बड़े चतुर होते हैं । यदि यह नफ़ीरी दूर से सुनी जाय, तो अच्छी मालूम होती है। नक्कारखाना शाही महल से बहुत दूर बना है, जिससे बादशाह को इसकी आवाज से कष्ट न हो। "नक्कारखाने के दरवाजे के सामने सहन के आगे एक बड़ा दालान है, जिसकी छत सुनहरे काम की है। यह बहुत ऊँचा, हवादार और तीन ओर से खुला हुआ है । उस दीवार के बीचोंबीच, जो इसके और महल के मध्य में है, प्रायः ६ फ़ीट ऊँचा और १ फुट चौड़ा शहनशीन बना हुआ है, जहाँ नित्य दोपहर के समय बादशाह आकर बैठता है। उसके दाएं-बाएँ शहज़ादे खड़े होते हैं, और ख्वाजासरा या तो मोर्छल हिलाते हैं या बड़े-बड़े पंखे हिलाते हैं, और या बादशाह का हुकुम बजा लाने के लिये हाथ-बाँधे खड़े रहते हैं । तख्त के नीचे चाँदी का जंगला लगा हुआ है, जिसमें उमरा, राजे तथा अन्य राजाओं के प्रतिनिधि हाथ बांधे और नीची आँखें किये बैठे रहते हैं । तख्त से कुछ दूर हटकर मन्सबदार या छोटे-छोटे उमरा खड़े रहते हैं । इसके अतिरिक्त जो स्थान खाली बचता है, उसमें बड़े-छोटे अमीर ग़रीब सब तरह के लोग भरे रहते हैं । केवल यही एक स्थान है, जहाँ बाद- शाह को सर्वसाधारण के आगे उपस्थित होने को सुअवसर मिलता है, और इसलिये इसे आम व खास कहते हैं। यहाँ डेढ़-दो घण्टे तक लोगों का सलाम व मुजरा होता रहता है। इसलिये बादशाह के मुलाहजे के लिये अच्छे-अच्छे सजे और सधे घोड़े पेश किये जाते हैं । इनके बाद हाथियों की बारी आती है, जिनकी मैली खाल खूब नहला-धुलाकर साफ़ कर दी जाती है, और फिर स्याही से रंग दी जाती है। इसके सिर से लाल रंग की लकीरें सूड के नीचे तक खींच दी जाती हैं। फिर इन पर जरी की झूलें पड़तीं हैं, जिनमें चाँदी के घण्टे एक जंजीर से बाँधकर उसके दोनों ओर लटका दिये जाते हैं। दो छोटे-छोटे हाथी, जो खूब सजे होते हैं, खिदमत- गारों की तरह इन बड़े हाथियों के दोनों ओर चलते हैं। यह हाथी झूम- झूमकर और सँभलकर पैर रखते हैं, इतराते हुए चलते हैं, और जब तख्त के निकट पहुँचते हैं, तो महावत–जो उनकी गर्दन पर बैठा होता है अंकुश चुभोकर कुछ आज्ञा-सूचक शब्द कहता है। उस समय हाथी घुटने के बल
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