२२१ आगे बढ़ी -लखनऊ, कानपुर इत्यादि विद्रोह के मुख्य केन्द्र थे। उधर सिक्खों ने किसी भाँति विद्रोह में सहायता न दी। बादशाह ने एक अपना खास दूत ताजुद्दीन पटियाला, नाभा आदि रियासतों के राजाओं के पास भेजा था। उसने बादशाह को लिखा- "सिख-सरदार सब सुस्त और कायर हैं । उनसे बहुत कम आशा है। वे फिरंगियों के हाथों के खिलौने हैं। मैं उनसे एकान्त में मिला और बातें की। उनके सामने कलेजा पानी कर कर दिया। इस पर उन्होंने जवाब दिया-'हम मौके की इन्तजारी में हैं। बादशाह का हुक्म होते ही हम दुश्मनों को एक-ही दिन में मार भगायेंगे, परन्तु मेरे विचार में उन पर विश्वास नहीं किया जा सकता।" उधर अंग्रेज़-सरकार ने इन राजाओं को अपने आधीन करने में बड़ी- बड़ी युक्तियाँ काम में लीं। अब सिक्ख राजाओं की सहायता लेकर सर हेनरी बनार्ड भारी सेना ले, दिल्ली पर चढ़ आया। उसने भी मार्ग में लूट-मार, अग्नि-काण्ड, क़त्ले आम बराबर जारी रखा। उधर दिल्ली में पल्टन और खजाने जमा हो रहे थे। बादशाह के नाम राज-भक्ति के पत्र आ रहे थे। शहर में बारूद और हथियारों के कारखाने खुल गये थे, जिनमें दर्जनों तो रोज ढलतीं, और हज़ारों मन बारूद तैयार होती थी। बादशाह, हाथी पर बैठकर नगर में निकलता और नगरवासियों को उत्साहित करता। बादशाह ने एक ऐलान छपाकर सब फ़ौजों और बाजारों में बँटवाया था। वह इस प्रकार था- "तमाम हिन्दू मुसलमानों के नाम । हम महज अपना धर्म समझकर जनता के साथ शरीक हुए हैं। इस मौके पर जो बुजदिली दिखायेगा- भोलेपन के कारण दगाबाज फिरङ्गियों पर एतबार करेगा-वह जल्द शर्मिन्दा होगा, और इङ्गलिस्तान के साथ अपनी वफ़ादारी का वैसा ही इनाम पावेगा, जैसा लखनऊ के नवाबों ने पाया। इसके अलावा इस बात की भी जरूरत है कि इस जङ्ग में तमाम हिन्दू और मुसलमान मिल कर काम करें, और किसी प्रतिष्ठित नेता की हिदायतों पर चलकर इस तरह का व्यवहार करें, जिससे कि अमनो-अमान कायम रहे, और ग़रीब सन्तुष्ट -या
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