पृष्ठ:भारत में इस्लाम.djvu/२४८

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२३६ प्रवृत्त होना अवश्य ही अकीर्ति का काम है, और बिना छेड़-छाड़ के किसी पर चढ़-दौड़ना अवश्य ही नीचता का काम है।" हेस्टिग्स ने कर्नल चैम्पियन की आधीनता में तीन ब्रिगेड अँगरेजी सेना और ४००० कड़ावी रवाने किये । रुहेलों ने प्रथम तो बहुत-कुछ लिखा- पढ़ी की, पर अन्त में हार-कर युद्ध की तैयारियाँ की, और हाफ़िज रहमतखाँ ४० हजार सेना लेकर अवध के नवाब और अँगरेजों की सम्मिलित सेना की गति रोकने को अग्रसर हुए। बाबुल-नाले पर घोर युद्ध हुआ, और रुहेलों की वीरता से इस संयुक्त सेना के छक्के छूट गये। पर भारत से मुसलमानों का भाग्य-चक्र तेजी से फिर रहा था। २३ अप्रैल १७७४ में स्मरणीय दिन हाफ़िजखाँ युद्ध में मारा गया, और पूर्वी सेनाओं के दस्तूर के अनुसार उसके मरते ही सेना का उत्साह भंग होगया, और वह भाग चली। रुहेलों का अस्तित्व मिट गया ! नवाब की फ़ौज ने भागते रुहेलों को मारने और लूटने में बड़ी फुर्ती दिखाई । एक लाख से अधिक रुहेले सुख-निवासों को छोड़-छोड़कर विकट जंगलों में भाग गये। नवाब ने फ़सल उजाड़ दी; कुछ घोड़ों से कुचलवा दी। नगर गाँवों में आग लगवा दी। क्या मनुष्य, क्या स्त्री, क्या बालक, या तो क़त्ल कर दिये गये, या अंग-भंग करके तड़पते छोड़ दिये गये, अथवा गुलाम बना- कर बेच दिये गये । रुहेले सरदारों की कुल-महिलाओं और कुमारी कन्याओं का अत्यन्त पाशविक ढंग से सतीत्व नष्ट किया गया। यह सब काम जब नर-पशु नवाब के सिपाही कर रहे थे, तब अंग्रेज-सेना तटस्थ खड़ी थी ! हेस्टिग्स के इस कृत्य का विरोध करते हुए कलकत्त के कुछ मेम्बरों ने विलायत को लिखा था- "रुहेलखण्ड की बर्बादी की असली बात अब छिपाने पर भी देर तक नहीं छिपी रहेगी। अब वह समय दूर नहीं है, जब कारण बताने के पूर्व ही परिणाम प्रकट हो जायेगा। ऐसा होने पर यह निश्चय कर लेना कठिन न होगा कि किसी व्यक्ति की दुर्व्यवस्था से सम्पत्तिशाली एवं भरे पूरे एक राज्य का अकारण नाश हुआ, और उसमें बसने वाले मनुष्य भिखमंगों की दशा को प्राप्त हुए।" - . अंग्रेज-