पृष्ठ:भारत में इस्लाम.djvu/२९९

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.. २२ हैदरअली और टीपू हैदरअली के दादा वलीमुहम्मद एक मामूली फ़क़ीर थे, जो गुलबर्गा में दक्षिण के प्रसिद्ध साधु हज़रत बन्दानेवाज गेसूदराज की दरगाह में रहा करते थे। इनके खर्च के लिये दरगाह से छोटी-सो रकम बँधी हुई थी। इनका एक पुत्र था, जिसका नाम मोहम्मदअली था। उसे शेखअलो भो कहते थे। उसे भी लोग पहुँचा हुआ फ़क़ीर मानते थे। वह कुछ दिन बीजापुर में रहा, पीछे कर्नाटक के कोलार नामक स्थान में आकर ठहरा । कोलार का हाकिम शाह मुहम्मद दक्षिणी शेखअली का बड़ा भक्त था। शेखअली के ४ बेटे थे। उन्होंने बाप से नौकरी की इजाजत माँगी। पर उसने समझाया-हम साधुओं को दुनियाँ के धंधों में फँसना ठीक नहीं। निदान, वे पिता की मृत्यु तक उसके पास रहे। पिता को मृत्यु पर बड़ा तो पिता के स्थान पर अधिकारी हुआ, और सबसे छोटा अरकाट के नवाब के यहाँ फौज़ में जमादार हो गया, ओर तंजोर के फ़क़ोर पीरजादा कुरहानुद्दीन की लड़की से शादी कर ली। इससे उसे दो पुत्र हुए-जिनमें छोटे का नाम हैदरअली था। इस समय उसका पिता सिरा के नवाब के यहाँ बालाँपुर कलाँ का क़िलेदार था। जब हैदरअली ३ वर्ष का था, तब उसका पिता किसी युद्ध में मारा गया। उनका सब सामान जब्त कर लिया गया, और हैदरअली को भाई-सहित नक्क़ारे में बन्द कराकर नक्कारे पर चोटें लगवानी शुरू करा दी गई। इस अवसर पर उसके चचा ने धन भेज- कर उसका उद्धार किया, और अपने पास रक्खा। वहाँ उसने युद्धन -विद्या सीखी, और समय आने पर दोनों भाई मैसूर की सेना में भर्ती हो गये। २६०