पृष्ठ:भारत में इस्लाम.djvu/३००

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२६१ मैसूर रियासत मरहठों को चौथ देती थी। इस समय निज़ाम और मैसूर-राज्य का मिलकर अंगरेज़ों से युद्ध हुआ। इस युद्ध में हैदरअली एक साधारण सवार की भाँति लड़ा। इस युद्ध में हैदर ने जो कौशल दिखाया, उस पर मैसूर के दीवान की दृष्टि पड़ी, और उसने हैदर को डिण्डीनल का फौजदार नियत कर दिया। वहाँ उसने अपनी सेना को फ्रान्सीसी [रीति से युद्ध करने की शिक्षा दी और तोपखाने में भी फ्रान्सीसी कारीगर नियुक्त किये । धीरे-धीरे उसका बल बढ़ता गया, और वह प्रधान सेनापति हो गया। शीघ्र ही वह मैसूर का प्रधान-मन्त्री हो गया। उस समय प्रधान- मन्त्री ही राज-काज के कर्ता-धर्ता थे। महाराज तो साल में एकाध बार प्रजा को दर्शन देते थे। हैदरअली ने शीघ्र ही मैसूर की सम्पूर्ण सत्ता अधिकार में कर ली, और प्रधान-मन्त्री की पदवी उसकी खानदानी पदवी हो गई । दिल्ली के सम्राट ने भी उसे सीरा-प्रान्त का सूबेदार नियुक्त कर दिया। अब हैदरअली ने राज्य की व्यवस्था की ओर ध्यान दिया और शीघ्र ही प्रबन्ध उत्तमता से होने लगा। इसके बाद उसने आस-पास के प्रान्त में विजय प्राप्त कर, रियासत को बढ़ाना प्रारम्भ किया। यह वह समय था, जब मराठे बढ़ रहे थे। मराठों का मैसूर पर चार बार आक्रमण हुआ, पर अन्त में उन्हें हैदरअली से सन्धि करनी पड़ी। इस समय अंगरेज़ी कम्पनी की शक्ति भी किसी शक्ति की वृद्धि सहन न कर सकती थी। उन्होंने छेड़-छाड़ की और हैदरअली के मित्र कर्नाटक के नवाब को भड़काकर फोड़ लिया। हैदर ने यह देख, निज़ाम से सन्धि की, और दोनों ने मिलकर कर्नाटक और अंगरेज़ी इलाके पर हमला कर दिया। निजाम की ओर से ५० हजार सेना सहायतार्थ आई थी। इतनी ही अंगरेज़ी सेना जनरल स्मिथ की आधीनता में मद्रास से बढ़ी। हैदर के पास २ लाख सेना थी। इसमें से ५० हजार सेना लेकर उसने अंगरेजी सेना की गति रोकी । परन्तु निजाम को भी अंगरेज़ों ने फोड़ने की चेष्टा की। यह देख, हैदर ने सन्धि की चेष्टा की-पर, अंगरेज़ों ने उसके दूत को अपमानित करके निकाल दिया। यह देख, हैदर युद्ध को सन्नद्ध