२१२ होगया, और शीघ्र ही समस्त छिना हुआ देश लौटा लिया, तथा अंगरेज सेना को छिन्न-भिन्न कर दिया। इस समय हैदर के पुत्र टीपू की आयु १८ वर्ष की थी, और वह पिता के साथ युद्ध के मैदान में था। हैदर ने उसे ५००० सेना देकर दूसरे रास्ते मद्रास भेज दिया। वह इतना शीघ्र मद्रास पहुँचा, कि उसकी सेना को सिर पर देख, अंगरेज़ गवर्नर घबरा गया, और वे लोग भाग खड़े हुए। टीपू ने सेण्ट टॉमस नामक पहाड़ी पर कब्जा किया, और आस-पास के अंगरेज़ी इलाक़े भी क़ब्जे में कर लिये । उधर त्रिचनापल्ली में हैदर और जनरल स्मथ का मुक़ाबिला हुआ। ऐन मौके पर अपनी तमाम सेना को निजाम के अफ़सर ने इस बुरी तरह पीछे हटाया कि हैदर की तमाम फ़ौज में खलबली मच गई। यह विश्वास- घात देख हैदर ने अपनी सेना कुछ पीछे हटाई । उधर अंगरेज़ों ने उड़ा दिया कि हैदर हार गया, और टीपू को भी समाचार भेज दिया। टीपू उस समय मद्रास से १ मील दूर था। वह अंगरेजों के भर्रे में आ गया, और मद्रास को छोड़कर पिता से मिलने को चल दिया। इधर हैदर, बेनियमबाड़ी के किले की ओर बढ़ा, और उसे फ़तह करके आम्बूर की ओर गया। वहाँ उसे बहुत-सा हथियार और गोला-बारूद हाथ लगा। जनरल स्मिथ हार-पर-हार खाकर पीछे हटता गया। तब उसकी सहायता के लिये कर्नल कुड एक नई सेना लेकर बंगाल से चला। इस बीच में अंगरेज़ों ने पादरियों द्वारा हैदर के योरोपियन अफसरों को फोड़ने की पूरी-पूरी कोशिश की और सफलता भी प्राप्त की। पर अन्त में हैदर ने अपना तमाम इलाक़ा अंगरेज़ों से छीन लिया। उधर अंगरेजों ने बंगलौर को हथिया लिया था -उसे टीपू ने छीना। इस युद्ध में अनेक अंगरेज़ अफसर सेनापति सहित गिरफ्तार किये गये । अन्त में हैदर वीरपुत्र सहित सेना को खदेड़ते हुए मद्रास तक जा पहुँचा। अंगरेजों ने कप्तान ब्रुक को सुलह की बात-चीत करने भेजा । हैदर ने जवाब दिया-"मैं मद्रास के फाटक पर आ रहा हूँ । गवर्नर और उसकी कौन्सिल को जो कुछ कहना होगा-वहीं आकर सुनूंगा।" वह साढ़े तीन दिन के अन्दर १३० मील
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