२८८ गरीबों को भी अटूट धन दिया। इसके बाद वह भोजन करने बैठा ही था, कि सूचना मिली-क़िले के प्रधान संरक्षक अब्दुलग़फ्फ़ारखाँ को क़त्ल कर डाला गया है। टीपू तत्काल उठ खड़ा हुआ, और घोड़े पर सवार हो, स्वयं उसका चार्ज लेने किले में घुस गया। कुछ खास-खास सरदार साथ में थे। उधर विश्वासघातियों ने सैयद ग़फ्फ़ार को खत्म करते ही सफ़ेद रूमाल हिलाकर अंगरेज़ी सेना को संकेत कर दिया। यह देख, टीपू के सावधान होने से प्रथम-ही दीवार के टूटे हिस्से से शत्रु के सैनिक क़िले में घुस गये। एक नमकहराम सेनापति मीरसादिक़ यह खबर पा, सुल्तान के पीछे गया और जिस दरवाजे से टीपू क़िले में गया था, उसे मजबूती से बन्द करवाकर दूसरे दरवाजे से मदद लेने के बहाने निकल गया । वहाँ वह पहरेदारों को यह समझा ही रहा था कि, मेरे जाते ही दरवाजा बन्द कर लेना और हरगिज न खोलना, कि एक वीर ने, जो उसकी नमक- हरामी को जानता था, कहा-"कम्बख्त मलऊन ! सुलतान को दुश्मनों के हवाले करके यों जान बचाना चाहता है । ले, यह तेरे पापों की सज़ा है।" कहकर खट् से उसके दो टुकड़े कर दिये । पर टीपू अब फंस चुका था। जब वह लौटकर दरवाजे पर गया, तो उसी के बेईमान सिपाही ने दरवाजा खोलने से इन्कार कर दिया। अंगरेज़ी सेना टूटे हिस्से से किले में घुस चुकी थी। हताश हो, वह शत्रुओं पर टूट पड़ा। पर कुछ ही देर में एक गोली उसकी छाती में लगी। फिर भी वह अपनी बन्दूक से गोलियाँ छोड़ता ही रहा। पर, फिर और एक गोली उसकी छाती में आकर लगी। घोड़ा भी घायल होकर गिर पड़ा। उसकी पगड़ी भी जमीन पर गिर गई। अब उसने पैदल खड़े होकर तल- वार हाथ में ली। कुछ सैनिकों ने उसे पालकी में लिटा दिया। कुछ लोगों ने सलाह दी, कि अब आप अपने आपको अंगरेज़ों के सुपुर्द करदें। पर उसने अस्वीकार कर दिया। अंगरेज़ सिपाही नजदीक आगये थे। एक ने उसकी जड़ाऊ कमर-पेटी उतारनी चाही, टीपू के हाथ में अब तक तलवार
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