र्स थी-उसने उसका भरपूर हाथ मारा, और सिपाही के दो टूक हो दूर जा पड़ा। इतने में एक गोली उसकी कनपटी को पार करती निकल गई। रात को जब उसकी लाश मुर्दो में से निकाली गई, तो तलवार अब भी उसकी मुट्ठी में कसी हुई थी। इस समय उसकी आयु ५० वर्ष की थी। इस समय उसका बेटा फ़तह हैदर कागी घाटी पर युद्ध कर रहा था। पिता की मृत्यु की खबर सुनते-ही वह उधर दौड़ा। पर नमकहराम सलाहकारों ने उसे लड़ाई बन्द करने की सलाह दी। साथ ही जनरल हैरिस स्वयं कुछ अफसरों के साथ उससे भेट करने आये, और कहा कि यदि आप लड़ाई बन्द करदें, तो आपको आपके पिता के तख्त पर बैठा दिया जायगा। इस पर विश्वास कर, फ़तह हैदर ने युद्ध बन्द कर दिया। पर यह सिर्फ बहाना था। अंगरेजी सेना ने क़िले पर क़ब्जा कर लिया, और रङ्गपट्टन में अंगरेजी सेना ने भारी लूट-खसोट और रक्त-पात जारी कर दिया। अब अंगरेजी सेना महल से घुसी। टीपू को शेर पालने का शौक था। बाहरी सहन में अनगिनत शेर खुले फिरा करते थे। अंगरेजी फ़ौज ने भीतर घुसते ही इन्हें गोली से उड़ा दिया । महल में टीपू का खजाना, धन, रत्न और जवाहरात से ठसाठस था। इस सब माल, हाथी, ऊँट और भाँति-भाँति के असबाब पर अँगरेज-सेना ने क़ब्जा कर लिया। सुलतान का ठोस सोने का तख्त तोड़ डाला गया, और हीरे-जवाहरात व मोतियों की माला और जेवरों के पिटारे नीलाम कर दिये गये । सिर्फ़ महल के जवाह- रात की लूट का अन्दाजा १२ करोड़ रुपया था। उसका मूल्यवान पुस्त- कालय और अन्य मूल्यवान पदार्थ रङ्गपट्टन से उठाकर लन्दन भेज दिये गये । इसके बाद टीपू के भाई करीम साहब, टीपू के १२ बेटों और उसकी बेगमों को कैद करके रायविल्लूर के क़िले में भेज दिया गया। राज्य के टुकड़े-टुकड़े कर दिये गये। एक टुकड़ा निजाम के हाथ आया। बड़ा भाग अंगरेज़ी राज्य में मिला लिया गया। शेष भाग- मैसूर के हिन्दू राजकुल के एक ५ वर्ष के बालक को दे दिया गया, और विश्वासघाती पुणिया को उसका दीवान बना दिया गया । -
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