स्वीकार न की। अन्ततः पराजय स्वीकार की सम्राट अकबर ने जब कि उसने धर्म युद्ध एक दम रोक दिया और हिन्दू धर्म और हिन्दू संस्कृति के सामने-मित्रता के हाथ फैलाये और हिन्दू राजपूतों, हिन्दू राजनीतिज्ञों, हिन्दू कलाकारों और गुणियों की सलाह से उसने एक व्यवस्थित और शांत साम्राज्य की नींव डाली। जिस पर उसकी तीन पीढ़ियों ने ऐश्वर्य और विलास के भोग भोगे। दुर्भाग्य से औरंगजेब ने फिर से धर्म-युद्ध की तल- वार सी तीखी कि, परन्तु उसे शिवाजी, रामसिंह और छत्रसाल के हाथों अत्यधिक दुर्दशाग्रस्त होना पड़ा। और यों कहना चाहिये कि अपने राज्य के पचास वर्ष में से पूरे दस वर्ष भी तख्त ताऊस पर बैठकर आराम से न गुजार सका और चालीस वर्ष तक निरन्तर युद्ध-यात्रायें करता फिरा। अन्त में उसकी नीति का यह परिणाम हुआ कि उसके मरने के बाद केवल २५ ही वर्षों में मुग़ल साम्राज्य का सारा ही ढाँचा ध्वस्त हो गया। इसके बाद सन् ५७ के विदोह तक मुग़ल साम्राज्य एक मुर्दार वस्तु की तरह अपना अस्तित्व रखता रहा। और सन् ५७ में उसने न अपना ही विनाश किया, प्रत्युत इस्लामी सभ्यता और संस्कृति की भी बड़ी भारी हानि की। विद्रोह के बाद फिर से जमकर जब अंगरेजों ने हिन्दुस्तान पर हुकू- मत करनी शुरू की तो बे इस बात को कभी न भूले कि मुसलमान जिनकी नजर लालक़िले के कंगूरे पर है और जिन्होंने अभी-अभी अपनी प्रभुता खोई है अपने खून में एक रियासती बू भरे हुए थे जिसको जड़-मूल से नष्ट कर देना अंगरेजों के लिए जरूरी था। और हिन्दुओं से जो कि अंगरेजों के उसी प्रकार के गुलाम थे जैसे कि मुसलमानों के- जिनकी चरित्रहीनता और लालची स्वभाव को उन्होंने ठीक-ठीक परख लिया था, उतने भयभीत न थे। अंगरेजों ने मुसलमानों को जेर करने के लिये जो पहला कदम उठाया वह लार्ड मैकाले का वह चार्टर था कि जिसके द्वारा लार्ड मैकाले ने भारत के हिन्दू-मुसलमान युवकों को अंगरेजी शिक्षा देकर अंगरेजी भाषा के माध्यम से अंगरेजी संस्कृति की हिन्दू और मुस्लिम दोनों ही संस्कृतियों पर विजय प्राप्त कराना था। लार्ड मैकाले का यह उद्देश्य पूरा हुआ और देखते ही देखते भारतीय युवक अंगरेजी पढ़कर न केवल अंगरेजों के हो
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