पृष्ठ:भाव-विलास.djvu/१०१

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वियोग-शृंगार

 

शब्दार्थ—जुन्हैया–चाँदनी। यह आगी मदन ज्वर की–यह काम ज्वर की तपनि है। हहरतु है–घबड़ाता है। बारिधि–समुद्र। झर–लपट। नभ–आकाश। जाहि–जिसे। जोवत–देखने पर। जगत-संसार। तारे-नक्षत्र। चिनगारे ऐसे–चिनगारियों की तरह। बभूकौ–अग्नि की ज्वाला। बरतु है–जलता है।

उदाहरण तीसरा
सवैया

ब्याकुल ही बिरहाज्वर सो, सुभ पावनि जानि जनीनु जगाई।
घोरि घनारंग केसरि कौ, गहि बोरि गुलाल के रंग रँगाई॥
त्यों तिय सांस लई गहरी, कहिरी उनसों अब कौन सगाई।
ऐसे भये निरमोही महा, हरि हाय हमें बिनु होरी लगाई॥

शब्दार्थ—व्याकुल ही–घबड़ाई हुई थी। घोरि–घोलकर। सांस...गहरी–दीर्घ निःश्वांस छोड़ी। सगाई–संबंध।

नायक वियोग
उदाहरण
सवैया

सुधाधर से मुख बानि सुधा, मुसक्यानि सुधा बरसै रद पाँति।
प्रबाल से पानि मृनाल भुजा, कहि देव लतान की कोमल काँति॥
नदी त्रिबली कदली जुग जानु, सरोज से नैन रहे रस माँति।
छिनो भरि ऐसी तिया बिछुरे, छतियां सियराइ कहों किहि भाँति॥

शब्दार्थ—सुधाधर–चन्द्रमा। बानि सुधा–अमृतमय वचन। रदपांति–दंतपंक्ति। प्रबाल–मूंगा। कदली–केला। सरोज से नैन–कमल के समान नेत्र। छतियां...किहि भांति–छाती कैसे ठंडी रहे।