करुनात्मक वियोग
दोहा
दम्पतीन मैं एक के, विषम मूरछा होइ।
जहँ अति आकुल दूसरौ, करुनातम कहि सोइ॥
शब्दार्थ—आकुल—व्यग्र।
भावार्थ—जहाँ दम्पति (पति-पत्नी) में एक को विरह के मारे मूर्छा आजाय और दूसरा अति व्याकुल हो जाय वहाँ करुनात्मक वियोग होता है।
उदाहरण पहला—(लघु)
कवित्त
कन्त की बियोगिन बसन्त की सुनत बात,
व्याकुल ह्वै जाति बिरहज्वर सों जरिकैं।
देव जू दुरन्त दुखदाई देखो आवतु सो,
तामैं तुम्हे न्यारी भई प्यारी जैहे मरिकैं॥
एती सुनि प्यारे कह्यो हाय हाय ऐसी भयें,
होय अपराधी कौन कहौ सो सुधरिकैं।
हरि जू तौ हेरि जौं लो फेरि कहैं दूती कछु,
टेरि उठी तूती तौलौं तुही तुही करिकैं॥
शब्दार्थ—कन्त की वियोगिन—पति से विछुड़ी हुई। दुरन्त दुखदाई—अत्यन्त कष्ट देनेवाला। तामैं—उसमें (बसन्त में)। तुम्हें न्यारी भई—तुमसे विछुड़ी हुई। टेरि उठी—पुकार उठी। तूती—मादा तोता।