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पृष्ठ:भाव-विलास.djvu/१०४

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भाव-विलास


या विधि बरनत चारि बिधि, रस वियोग शृङ्गारु।
यातें कहे न और रस, बाढ़े बहु विस्तारु॥
रस संभोग वियोग को, यह बिधि करउँ बखानु।
या रस बिनु सबरस बिरस, कवि सब नीरस जानु॥

शब्दार्थ—निहचै—निश्चय। या......बिरस-इस रस के बिना सब रस फीके जान पड़ते हैं।

भावार्थ—सरल है।

 

तृतीय विलास

 

समाप्त