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भाव-विलास

 

नैननि कोटि कटाक्ष करै, कविदेव सु बैननि को रस बाढ्यो।
नेकु जितै चितवै चितदै तित, मैन मनो दिन द्वेक को ठाढ्यो॥

शब्दार्थ—कालिपरों लगि–कल परसों तक। भौंह मरोरि–भौंह मरोड़ कर। तनुतोरि–शरीर को मरोड़ कर। जोबन–यौवन। चितवै–देखे। तित–उधर। मैन–कामदेव। मनों...ठाढ्यो–मानों दो दिन से खड़ा हो।

५–सलज्जरति
सवैया

कूजत हैं कलहंस कपोत, सुकी सुक सोरु करैं सुनिता हू।
नैक हू क्यों न लला सकुचौ, जिय जागत हैं गुरु लोग लजाहू॥
हाथ गह्यो न कह्यो न कछू, कविदेवजू भौन मैं देखो दिया हू।
हाहा रहौ हरि मोहि छुऔ जिनि, बोलत बात लजात न काहू॥

शब्दार्थ—कूजत है–बोलत है। सुकी–तूती। सुक–तोता। सकुचौ–लजाओ, लज्जा करो। जिय–मन में, हृदय में। गुरु लोग–बड़े लोग। भौन–घर। दिया–दीपक।

मुग्धा सुरत
सवैया

खाट की पाटी रहै लपिटाइ, करौंट की ओर कलेवर काँपै।
चूमत चौंकत चन्दमुखी, कविदेव सुलोल कपोलनि चाँपै॥
बालबधू बिछियान के बाजतें, लाज तें मूदि रहै अँखियाँ पै।
आँसू भरे सिसके रिसके, मिसके कर झारि झुके मुख झाँपै॥

शब्दार्थ—खाट–पलंग। करौंट–करवट। लोल–सुन्दर। सिसके–सिसकी भरे। रिसके–क्रोधकर। मुख झाँपै–मुँह छिपाती है।