बोलनि मैं रस केलिन कै कवि, देव करी चित की गति लुंजै।
कालिंदी कूल महा अनुकूल ते, फूलति मंजुल मंजुल कुंजै॥
शब्दार्थ—अलीगन–भौंरे। माँह–मे। छहरें–शोभायमान हो। बोलनि मैं–बात चीत में। चित...लुंजै–चित की गति को लुंज कर दिया अर्थात् चित्त लोभायमान हो गया। मंजुल–सुन्दर।
२–रतिकोविदा
सवैया
कलि मैं केतिक कौतिक कै, रस हाँस हुलास विलासनि सोहै।
कोमल नाद कथा रस बादुनि, काम कला करिके मन मोहै॥
छेदि कटाक्ष की कोरनि सों गुन, सों पति को मन मानिक पोहै।
जानति तूं रति की सिगरी गति, तोसी बधू रतिकोविद कोहै॥
शब्दार्थ—केतिक–कितने ही। कौतिक–खेल। सिगरी गति–सब कलाएँ। तोसी–तेरे समान। रति कोविद–रति-चतुर। को है–कौन है ।
३–आक्रान्तनायका
सवैया
हार बिहार में छूटि परै अरु, भूषन छूटि परे हैं समूलनि।
जोरि सबै पहिरायौ सम्हारि के, अङ्ग सम्हारि सुधारि दुकूलनि॥
सीतल सेज बिछाइ कै बालम, बालमृनालनि के दल मूलनि।
वैसीय बैनी बनाइ लला, गहि गूंधौ गुपाल गुलाब के फूलनि॥
शब्दार्थ—दुकूलनि–वस्त्र, कपड़े। गहि–पकड़ कर।